Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब भी देखा हर शै में तुझे देखा

 

जब भी देखा हर शै में तुझे देखा
हर जर्रे में हर वक्त में तुझे देखा।

 

मुँह मोड़ा जब भी ख़ुशी ने मेरे दर से।
हर जख्म के हर जर्रे में तुझे देखा।

 

न जाने कितने चेहरों से मुलाकात हुई।
हर पल हर एक चेहरे में तुझे देखा।

 

चाँद को कभी भर नजर नहीं देखा।
जब भी आसमाँ देखा चाँद में तुझे देखा।

 

तू मेरे करीब कुछ इस कदर रहता है।
जब भी झांका अंदर रूह में तुझे देखा।

 

 


सुशील शर्मा

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