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जब भी फुर्सत मिले

 

सुशील शर्मा

 

 

जब भी तुम्हे अपनी व्यस्त दिनचर्या
से फुर्सत मिले।
देखना तुम कितना सुंदर हँसती हो
खिलखिलाती गुनगुनी धूप की तरह।

 

जब भी तुम्हे अपने विद्यार्थियों से फुर्सत मिले।
देखना तुम्हारा मन कैसा इतरा रहा है।
आँगन में घूमती तितलियों की तरह।

 

जब भी घर गृहस्थी के झंझावातों से बाहर निकलो।
देखना मैं वही उसी झील के किनारे
खड़ा हूँ प्यार के अभिसार के लिए।

 

जब भी माँ बाबूजी की सेवा से फुर्सत मिले।
देखना एक चिड़िया अपने कमरे की खिड़की पर बने घोसलें में चूजों को दाना चुगा रही है।

 

जब भी घर के रिश्तों को निभाने से फुर्सत मिले।
देखना मैं खड़ा हूँ तुम्हारे पीछे
तुम्हारे काले सफ़ेद बालों में
मोंगरे का गजरा लगाने।

 

अपने बेटे बेटियों के संदेशों से फुर्सत मिले।
तो देखना तुम्हारे मेसेज बॉक्स में
मेरे कुछ प्रेम से पगे पत्र पड़े है।
तुम्हारा अपना मैं।

 

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