Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जल पर दोहे

 

सुशील शर्मा

 

 

सूखा जंगल चीखता,खूब मचाये शोर
पेड़ो को मत काटिये ,सूखा जल सब ओर।

 

पानी पानी सब करें सूखी नदिया ताल।
मरती चिड़िया कर गई मुझ से कई सवाल।

 

मटका सिर पर लाद कर,कर पानी की आस।
चार कोस पैदल चलें,पानी करें तलाश।

 

झुलसी धरती ताप से,जीव जंतु बेहाल।
तन मन व्याकुल प्यास से,जीना हुआ मुहाल।

 

बिन पानी सांसे रुकीं ,जीवन है मजबूर।
प्यासी गौरैया कहे मुझे पिला दो नीर।

 

भुवन भास्कर क्रोध में उगलें धूप की आग।
दिन सन्नाटे से सना रात फुसकती नाग।

 

जल जीवन अनमोल है सृष्टि का परिधान।
अमृतमय हर बून्द है,श्रेष्ठ प्रकृति वरदान।

 

जल संरक्षण का नियम ,मन में लिया उतार।
जल का नियमन हम करें,शुद्ध करें व्यवहार।

 

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