Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जलते रावण की नसीहत

 

सुशील शर्मा

 

 

मैं रावण हूँ
सर्वकालिक महान विद्वान
प्रकांड पंडित भविष्य वेत्ता
महान वैज्ञानिक
तीनो लोकों में मेरे जैसा वीर कोई नहीं था।
मेरा व्यक्तित्व न भूतो न भविष्यति है।
रावण जैसा न कोई हुआ
रावण जैसा न कोई होगा।
एक लाख पूत सवा लख नाती
से भरे परिवार का मुखिया था मैं।
सोने की लंका का अधीश्वर।
सहस्त्र विद्याओं का ज्ञाता।
साक्षात् शिव जिसके घर विराजते थे
मंदोदरी जैसी सती का पति।
मेघनाथ जैसे बल वीर्य पराक्रमी का पिता था मैं।
कुम्भकर्ण जैसे अपरिमित शक्तिशाली का अग्रज था।
राजनीति की परिभाषा मुझ से ही शुरू होती थी।
राम का शौर्य और साहस मेरे सामने नगण्य था।
आज मुझे चौराहों पर अपमानित करके इसलिये जलाया जाता है क्योंकि मैंने मर्यादाओं का उल्लंघन किया था।
मदमस्त होकर स्त्री चरित्र की हत्या करनी चाही।
जगतजननी सीता को अपमानित किया।
अपने अहंकार में दूसरे की स्त्री का हरण किया।
आज मैं मनुष्य के अंतर्मन में विहित दुर्गुणों का प्रतीक बन गया।
सिर्फ चरित्र हीनता के कारण संपूर्ण कुल के विनाश का कारण बना।
मेरे विनाश की गाथा से आपको सबक लेना चाहिए कि ।
आप भले ही कितने शक्तिशाली क्यों न हो।
अगर आप चरित्र और सत्य पर आधारित नहीं है।
तो आपको चौराहों पर ऐसे ही जलील होना होगा।
मेरे जलते हुए पुतलों की तरह।

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ