Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिजीविषा

 

मुम्बई से बिहार जाने वाली ट्रेन से वह सफर कर रहा था।अत्यधिक गर्मी थी
बोगी ठसाठस भरी थी।वह बोगी के गेट पर बैठा था।अचानक नींद का झोंका आया और
वह छिटक कर ट्रेन के नीचे आ गया।एक चीख के साथ ट्रैन धड़धड़ाती निकल गई।
जब उसे होश आया तो उसने देखा कि उसके दोनों पैर कट चुके है उनमें से खून
बह रहा।उसने सोचा कि अब तो जिंदगी के कुछ पल शेष हैं।उसने देखा कि पैर
अभी पूरे नही कटे हैं लटके है।उसने हिम्मत नही हारी दोनो पैरों को उसने
फिर से जमाया पास ही उसका बेग पड़ा था उसमें से गमछा निकाल कर उसने किसी
तरह बांध लिया।सांसे आधी अधूरी सी चल रही थीं धीरे धीरे बेहोशी छाने लगी
और वह फिर से बेहोश हो गया लगा सब कुछ खत्म।सुबह की पो फटने वाली थी।जब
उसे फिर होश आया तो एक ट्रेन की आवाज़ सुनाई दी।न जाने उसमे कहाँ से इतनी
शक्ति आ गई वह लुढक कर पटरियों के बाजू हो गया और खून से लथपथ शर्ट
हिलाने लगा।ट्रेन के ड्राइवर ने उसे दूर से ही देख लिया और उसने ट्रैन
रोकी। कुछ साहसी युवकों ने उसे ट्रेन में उठा कर चढ़ाया तब तक वह बेहोश हो
चुका था।
उसे जब होश आया तो उसने देखा कि वह अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में है उसके
दोनों पैरों का ऑपरेशन हो चुका है।दोनों पैर कट गए हैं किंतु उसका जीवन
बच गया।
डॉ सहित सभी लोग हैरान थे कि यह व्यक्ति बच कैसे गया?
आखिरकार जीने की जिजीविषा ने उसे नया जीवन प्रदान किया।

 

 

सुशील कुमार शर्मा

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