Swargvibha
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काश में तुम्हे पढ़ पाता

 

काश में तुहे पढ़ पाता अख़बार की तरह

लेकिन तुम तो निकले गिरे बाज़ार की तरह

तुम मेरे लिए थोड़े वेद थे थोड़ी गीता थोड़े पुराण से

थोड़े कुरान थोड़े थोड़े संविधान से

आँख में काजल से

पैर में पायल से

साहित्य में संस्कार से

समाज में सरोकार से

मंच पर पुरुष्कार से

अपनों के तिरष्कार से

दर्शन में वेदांत से

सच में सिद्धांत से

देश में प्रांत से

अस्तित्व में सीमान्त से

लेकिन तुम रौंद गए मेरे अस्तित्व को

गिरगिट की तरह बदल लिया अपने व्यक्तित्व को

काश में तुहे पढ़ पाता अख़बार की तरह

लेकिन तुम तो निकले गिरे बाज़ार की तरह

 

 

 

सुशील कुमार शर्मा

 

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