Swargvibha
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कैद में धूप

 

सुशील शर्मा

 

 

अंतर्विरोधों, अंधविश्वासों से ग्रस्त,
शोषण पर आधारित
तुम्हारा सड़ा गला
घृणा से अभिसिंचित तंत्र
क्रूर छदम सहानुभूति
खलती है तुम्हारी कृत्रिम हंसी
निर्धनता, शोषण, बेकारी
और असुरक्षा में घिरा
गण आखरी छोर पर खड़ा।
निरर्थक, अदृश्य और अमूर्त
आदमी तिल-तिल कर मरता है।
आक्रोश, उत्तेजना, बेचैनी।
रोज़मर्रापन की बातें हैं।
'यथार्थ का विकल्प
कहीं स्वप्न में बैठा है।
धूप कहीं कैद है।
ऊँचे मकानों में

 

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