Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कातिल तुम

 

सुशील शर्मा

 

 

कातिल तुम
मसीहा भी लगते
ये मेरे दोस्त।

 

एक खंजर
तेरे हाथ में कैसा
गले में बांह।

 

मेरे अपने
खड़े उस तरफ
दुश्मन बन।

 

दिल जो टूटा
मुस्काते रहे हम
कोई न जाना।

 

मेरा अंतस
ईश्वर या शैतान
किसे है पता।

 

मेरा विश्वास
तोड़ कर भी तुम
दिल के पास

 

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