Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खुशियां दामन में कहाँ समाती हैं

 

खुशियां दामन में कहाँ समाती हैं।
बारिश मौसम में कहाँ समाती हैं।

 

न चाह कर भी तुमसे प्यार करते हैं।
ये आशनाई मन में कहाँ समाती है।

 

रिश्तों का सच कुछ सहमा सा लगता है।
ये रुसवाईयाँ रिश्तों में कहाँ समाती हैं।

 

कुछ नई कलियां खिली हैं बगीचे में।
उड़ती महक कलियों में कहाँ समाती है।

 

तितलियां कान में कुछ कह जाती हैं।
ये तितलियां मुट्ठी में कहाँ समाती हैं।

 

 


सुशील शर्मा

 

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