Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !

 

सुशील शर्मा

 

 

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !कितना लिखूं !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

प्रेम का सागर लिखूं !या चेतना का चिंतन लिंखू !

प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिंखू !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं !

कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगश्वर लिखूं।

चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं।

देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।

रुक्मणी का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।

वासुदेव का तनय लिखूं या नन्द का गोपाल लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

नदियों सा बहता लिखूं या सागर सा गहरा लिखूं।

झरनों सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

आत्मतत्व चिंतन लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं।

स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !कितना लिखूं !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ