Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्योंकि मैं जीवित हूँ।

 

देखो तो सही... ... .

घर की इन दीवारों में जीवित हूँ मैं।

बसंत के फूलों में देखना जीवित मिलूंगा मैं तुम्हे।

किताब के हर पन्ने पर जीवित हूँ मैं।

व्याख्यान कक्षों में..... ब्लैक बोर्ड पर जीवित हूँ मैं।

जीवित हूँ मैं तुम्हारे आँगन की फुलवारी में।

तुलसी के पौधे में ध्यान से देखना मेरे अक्स।

मैं जीवित हूँ तुम्हारी माँ की आँखों में।

उसकी उन चूड़ियों में जो उसने सहेज कर रखी हैं अपने बक्से में।

जीवित हूँ मैं राघव में ....

मेरी छवि देखना तुम किट्टू में ....... जीवित मिलूंगा तुम्हे।

जब भी ऊँचा उठोगे ...... मुस्कराओगे।

उस मुस्कराहट में जीवित मिलूंगा तुम्हे।

असफलता अपमान के आंसू जब भी गिरेंगे तुम्हारी आँखों से

देखना प्रतिबिम्ब मेरा उन आँसुओं में।

जीवित मिलूंगा तुम्हे।

कर्तव्य पथ पर डगमगाने लगो।

या जिंदगी के झंझावातों में उलझ जाओ।

घबराना नहीं

जीवित मिलूंगा तुम्हे तुम्हारा हाथ थामे हुए।

 



सुशील शर्मा

 

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