सुशील शर्मा
मुझे ऐसा लगता है की तुम्हे मुझसे बेपनाह ...... हो गई है।
क्योंकि जब भी मेरी याद तुम्हे आती है
तुम गिनने लगती हो बाहर गमले में खिले फूलों को।
जब भी मैं तुम्हारी यादों में मुस्कराता हूँ।
तुम पिंजरे के पास जाकर गोरैया को पुचकारती हो।
अक्सर मेरे फोटो को एकटक देख कर।
करती हो अनकही बातें जो तुम कभी न कह सकी।
बच्चों को अपने पास बैठा कर मेरी तरह।
कोशिश करती हो उन्हें जिंदगी के पाठ पढ़ाने की।
तुम्हारी हर अदा में हर बात में शामिल हो जाता हूँ मैं।
अनजाने में तुम्हारे मुंह से मेरे शब्द निकलते हैं।
जब भी मंदिर में जाकर कान्हा की मूर्ति के सामने।
बंद आँखों में मुझे देख सिसक लेती हो।
लम्हा लम्हा सा बहता है जिंदगी का सफर।
सब रिश्तों से आँख बचा कर रो लेती हो।
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