Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मन का द्वंद गहन हो जब भी

 

सुशील

 

मन का द्वंद गहन हो जब भी।
जीवन में अंतर्द्वंद हो जब भी।
मुझ से आकर तुम मिल लेना।
सब दरवाजे बंद हो जब भी।

 

कठिन रास्तों पर है चलना।
पग पग पर बैठे हैं छलना।
संघर्षों से लोहा लेकर।
मंजिल तुमको निश्चित मिलना।

 

कभी खुशी कभी गम जीवन में
कष्ट कंटकों के आंगन में।
तुमको आगे बढ़ते जाना।
शिखर शौर्य के निज मधुवन में।

 

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