बिजली /दामिनी
बारिश /बरसात /सावन
सुशील शर्मा
झरते मेघ
ह्रदय का गुबार
पानी सा बहा।
करो शीतल
बरस कर मेघ
तपा भूतल।
झरो ओ मेघ
बरस लो सतत
बुझे तपन।
सृजन पंथ
आकाश से बरसे
मेघ अनंत।
मेघ सिन्दूर
सुहागिन है धरा
मांग में भरा।
तेरी चुनरी
छत पर बादल
चाँद का साया।
पिया आवन
बदरिया सावन
झरता मन।
चाँद आशिक
बिजलियाँ छेड़ता
बदरी हंसी।
बूंदों ने छुआ
यादों का सिरहाना
तुम्हारी यादें।
धानी चूनर
बारिश छम छम
बिंदी बिजुरी।
सावन मीत
रिमझिम के गीत
तुमसे प्रीत।
मेघ का दर्द
बिजली में चमका
बारिश आंसू।
नीलाभ नभ
बल खाती दामनी
मेघ स्वामिनी।
मेघ की प्रिया
तड़ित प्रवाहनी
तीव्र गामनी।
दीप्ति सी द्युति
दामनी सी दमके
दिग दिगंत।
बिजुरी गिरा
सुख चैन लूट के
क्यों तुम गए ?
मैं चपला हूँ
आसमां के सीने में
छुपी बला हूँ।
मन का बल्व
प्रीत तेरी बिजली
मुस्कान स्विच।
नाचता मोर
सावन में पपीहा
गाये मल्हार।
सूखा सावन
गुजर गया मेघ
प्यासी धरती।
उधार मांगी
अंजुरी भर बूंदें
कंजूस मेघ।
तुम्हारा प्रेम
शहर का बादल
बिन बूंदों का।
सूखे तालाब
तरसती नदियां
बारिश कहाँ ?
दीप्त बदन
विद्युत् से नयन
स्पंदित मन।
मेघ मल्हार
दामनी द्युतिकार
जल फुहार।
गिरती धार
झर झर बौछार
पिया पुकार।
भीगा सावन
घन मनभावन
आओ साजन।
सुशील शर्मा
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