भाइयों के लिए "जिज्जी "मायके की "गुड्डी "तुम।
ससुराल की "अर्चना "बच्चों के लिए "अच्छी माँ "तुम।
पड़ोसियों के लिए "भाभी" " चाची"छात्रों के लिए "मेम "तुम।
सभी रिश्तों को अपने आँचल में समेटती तुम।
मेरे सूने आँगन को बसंती रंगों से सरोबार करती तुम।
दुखों के बदले सुखों की बारिश करती तुम।
मेरे अहसासों मेरे जज्बातों को गुनगुनाती तुम।
मेरे दर्द के तूफानों को मलहम सी सहलाती तुम।
खुद से ज्यादा मेरे सुखों का ध्यान रखती तुम।
हर खुशी मुझ से शुरू कर मुझ पर ख़त्म करती तुम।
इन 21 वर्षों में मुझ में अपना अस्तित्व खोती तुम।
बहुत आभार इन इक्कीस वर्षों में मुझे बच्चे की तरह संभालने के लिए।
(मेरी इक्कीसवीं साल गिरह पर मेरी पत्नी अर्चना को समर्पित )
सुशील कुमार शर्मा
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