सुशील शर्मा
मृगतृष्णा सी
कितनी भटकन
तेरी चाहत।
शब्द संगीत
थिरकती कविता
लय का नृत्य।
चाँद समूचा
दरिया सा बहता
रूप में तेरे।
रूप तुम्हारा
तुलसी का विरबा
मन को प्यारा।
थकी सी नींद
महकती धूप में
आँखों पे सोई।
फिर निकला
भागता सा सूरज
सहमी ओस।
आँसू की बूँद
बनी है समंदर
डूबता मन।
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