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मुझे पढ़ना है ऐसी रचना

 

सुशील शर्मा

 

 

कोई रचना ऐसी लिखना जिसमे
मैं माँ से रूठ कर मुँह फुला कर बैठा होऊं।
कोई रचना लिखना जिसमे माँ
आँगन के चूल्हे पर ज़्वार की हाथ की रोटी बना रही हो।
कोई रचना बताना जिसमे चिड़िया
चोंच में दाना रख कर चूजे को चुगाती हो।
कोई रचना लिखना जिसमे मजदूर की
फटी बनियान से पसीने बदबू की कहानी हो।
कोई रचना जिसमे नीले आसमान के नीचे
खेत में फसलों बीच मेरा दौड़ना हो।
कोई ऐसी रचना लिखना जिसमे अम्मा
पड़ोसन फातिमा से लड़ रही हो और
फातिमा की गोद में बैठा मैं रोटी का खा रहा हूँ।
कोई सी रचना जिसमे दादाजी खाट पर लेटे हों
और बाबूजी उनके पैर दबाते हों।
दादी अम्मा को चिल्लाती हों और
अम्मा घूँघट डाले मुस्कुरातीं हों।
एक रचना लिखना जिसमे कुहासे में
शाल में लिपटी दो नीली आँखें
किसी का इन्तजार करती हों।
कोई रचना हो तो बताना जिसमे खबर हो
की सीमा पर माँ के बेटे ने सीने पर गोली खाई है।
कोई रचना लिखना जिसमे डल्लू
फटी कमीज पहने फटा बस्ता लटकाये
सरकारी स्कूल की फटी फट्टी पर बैठा है।
कोई रचना हो तो बताना जिसमें
बचपन पेट के लिए कप प्लेट धो रहा हो।
एक रचना मुझे लिखना है जिसमे
पड़पड़ाती बारिश में नदी में कूंदता मेरा बचपन हो।
एक रचना लिखना है जिसमे साईकिल
चलाता मैं और मेरे पीछे भागता मेरा भाई हो।
रचना रच सको तो रचना जिसमे
शहर के कोलाहल से भरा बियावान हो।
जिसमे गांव की आकर्षक निःस्तब्धता हो
जिसमे खलिहान में बनती दाल बाटियों हों।
कोई रचना लिखना जिसमे
अबोध बालक सी मासूमियत हो।
दुःख की सिलबिलाहट हो।
जिसमे सुख की लबलबाहट हो।
एक रचना जिसमे नदी के
लुटे किनारों की कथा हो।
जिसमे सत्ता में शुचिता की व्यथा हो।
कोई रचना लिखो जिसमें
शहर के अजनबी होते चेहरे हों
जिसमे भविष्य के स्वप्न सुनहरे हों।
एक रचना जो साहित्य के व्याकरण से अबोली हो ।
जिसमें गांव की गोरी की ठेठ बोली हो।
कोई रचना जिसमे आम आदमी के बड़े काम हों।
जिसमें सत्ता की जगह श्रमिकों के नाम हों।
जिसमें माँ बाबूजी के चरणों पर मेरा सिर हो।
जिसमें संस्कारों का किस्सा अमर हो।
एक रचना जिसमें शब्दकोषों से दूर सृजन हो
जिसमे भावों से भरा भजन हो।
एक रचना जिसमे स्वयं से मुलाकात हो
एक रचना जिसमें जिसमे बिना बोले बात हो।
एक रचना जिसमें लाइन में खड़ा गरीब हो।
जिसमें गुलाबी नोट लहराता अमीर हो।
एक रचना लिखना जिसमें मैं अकेला
और तुम तन्हा तारों के पास बैठे हों।
एक रचना जिसमें मुस्कुराहटें दर्द समेटें हों।
रचना का कोई ऐसा संसार हो तो बताना
जिसमें साहित्य का न हो व्यापार तो बताना।

 

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