Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मुस्कराओ न

 

सुशील शर्मा

 

 

देखो न इतने प्यार से कहीं सब्र न छलक जाये।
मुस्कुराने की इस अदा पर कही प्यार न हो जाये।

 

 

बहुत जज़्ब किया खुद को तेरे सामने न आऊं।
कही तू देख कर मुझ को गले से न लिपट जाये।

 

 

रात को चाँद सरगोशियां किया करता है।
ऐसा न हो चाँद कहीं तुझ में ही सिमट जाए।

 

 

घने दरख़्तों के नीचे तेरी गोद में मेरा सिर हो।
तू खिलखिला कर हंसे और मुझ से लिपट जाए।

 

 

दिल ने बहुत चाहा कि तुझे अपना कह सकूँ।
न ज़माने की इज़ाज़त थी न मुझसे ही कहा जाए।

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ