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नरी नहीं नारी हूँ

 

सुशील शर्मा

 

 

 

भारतीय नारी
नर की 'नरी' नहीं
नर की अभिवृद्धि नारी है।
नारी में समाहित हैं
हज़ारों मानवीय रिश्ते।
वह सहस्त्रदल कमल है।
हर रिश्ते को कमल की पाँखुड़ी सी
संवारती सजोती निभाती
सम्पूर्ण कमल की मानिंद
मानवीय रिश्तों के परागकणों को
अपने अंदर समेट कर
नर के हर रूप को अपने अंदर
अंकुरित कर विकसित कर
देती है सृष्टि को नया रूप।
नारी का शरीर विग्रह है।
उन असीम अनंत मानवीय गुणों का
जो मोह, माया, दया ,लक्ष्मी, राग ,द्वेष
प्रेम ,अकल्पना, संकल्पना ,संवेदना ,नृत्य ,संगीत
को अपने में सम्पूर्ण रूप से प्रस्फुटित ,पल्लवित कर।
सनातन संस्कृतियों का निरालंब
संवहन एवम संधारण करती है।
मानवता को नए आयाम देती है।
वह नर के चैतन्य को दुलारती है।
वह छुपा लेती है अपनी कुंठा,
अपनी टूटन अपने एकाकीपन को।
धर्म अर्थ काम मोक्ष के आधारों,
का आधार बन कर नर को मुक्ति पथ पर
प्रशस्त कर अपने अस्तित्व को खो देती है।
द्रौपदी ,सीता ,सावित्री ,राधा ,
कैकई ,काली दुर्गा ,लक्ष्मी ,
यशोदा ,कौसल्या,अहिल्या
के सोपानों से गुजरते हुए।
कई रामों ,कृष्णों ,पेगम्बरों को ,
जन्म देकर इस समग्र सृष्टि को ,
सुरभित सुमनों से पल्लवित करते हुए।
ढूंढ रही है अपनी अस्मिता अपना अस्तित्व।

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