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पाषाण पाहन पत्थर

 

सुशील शर्मा

 

 

पाषाण होना
नहीं होता आसान
दर्द को पीना।

 

ह्रदय पीड़ा
पत्थर की चट्टान
टूटती नहीं।

 

बसता नहीं
ईश्वर पाषाण में
मन टटोलो।

 

निष्ठुर सही
पाषाण सा कठोर
नहीं था कभी।

 

पत्थर बनी
निर्दोष अहिल्याएं
मुक्ति की आस।

 

युगों की पीर
पत्थर बन बैठी
ह्रदय तीर

 

शिल्पी के भाव
मुखर हो उभरे
पाषाण पर।

 

पाषाण शिला
अहिल्या सी निस्तब्ध
राम की आस।

 

आज का दौर
पुजते हैं पत्थर
कहाँ ईश्वर?

 

पाषाण युग
सभ्यताओं के दौर
सतत क्रम

 

चेतना शून्य
कुटिल सा कुंठित
पाषाण मन

 

पाषाण अहं
पराजित करता
स्वयं जीवन।

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