Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पेट की आग गर चूल्हे से आई न होती

 

पेट की आग गर चूल्हे से आई न होती।
तो जिंदगी कभी इतनी पराई न होती।

 

कुछ और बेहतर बना लेते जिंदगी को।
गर तिरी वो मुस्कान हरजाई न होती।

 

दुश्वारियां जिंदगी की नासूर बन गईं होतीं।
तिरी तमन्ना गर दिल मे मुस्काई न होती।

 

तिरे साथ चलने की तमन्ना थी दूर तक।
देख लेते मुड़ कर हमे तो ये जुदाई न होती।

 

हम तो कब के खो जाते जमाने की भीड़ में।
गर हमारी ये हौसला अफजाई न होती।

 

 

 

सुशील कुमार शर्मा

 

 

 

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