पेट की आग गर चूल्हे से आई न होती।
तो जिंदगी कभी इतनी पराई न होती।
कुछ और बेहतर बना लेते जिंदगी को।
गर तिरी वो मुस्कान हरजाई न होती।
दुश्वारियां जिंदगी की नासूर बन गईं होतीं।
तिरी तमन्ना गर दिल मे मुस्काई न होती।
तिरे साथ चलने की तमन्ना थी दूर तक।
देख लेते मुड़ कर हमे तो ये जुदाई न होती।
हम तो कब के खो जाते जमाने की भीड़ में।
गर हमारी ये हौसला अफजाई न होती।
सुशील कुमार शर्मा
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