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प्रणाम विषधरों

 

सुशील शर्मा

 

 

सभी विषधरों को प्रणाम को प्रणाम करता हूँ।
उन सभी सांप सपोलों को नमन है।
जिनके अस्तित्व को कभी
मेरे व्यवहार से चोट पहुंची हो।
आप सभी विषधर दिखने
में बहुत मासूम दिखते हो।
इंसानी चेहरा लिए आप
सभी देवदूत जैसे लगते हो।
कोई लकदक सफेद कुर्ता पहने है।
कोई तिलक चंदन लगाए है।
कोई जालीदार टोपी पहने है।
कोई समाजसेवी के वेश में है।
कोई सरकारी नौकरी
का नकाब लगाए है।
कोई सफल व्यापारी है।
कोई काला लबादा ओढ़े
न्याय को बचा रहा है।
कोई शिक्षा के मंदिर में बैठा है।
इन विभिन्न स्वरूपों में आप
सभी विषधर समय समय
पर अपने असली रूप में आकर
हम सभी को कृतार्थ करतें है।
हमें याद दिलातें हैं कि हर तरफ
सिर्फ आप जैसे विषधरों का ही
निष्कंटक साम्राज्य व्याप्त है।
जब तक आपके स्वार्थ
सिद्ध होते है तब तक आप
विभिन्न रूपों में शांति से
जनता की सेवा करते रहते हैं।
जैसे ही किसी ने आपके रास्ते की
रुकावट बनने की कोशिश की
वैसे ही आप अपने
सहस्त्र फनों से उस को
तहस नहस कर पुनः
विभिन्न रूपों में समाज सेवक
का साधुरूप धारण कर लेते है।
आपके सपोलें चमचों के रूप में
आपका आतंक चारों ओर
प्रतिष्ठित करने में व्यस्त रहतें है।
आज नागपंचमी के दिन मैं आप
को नमन करता हूँ।
मुझसे जाने अनजाने में
कोई गलती हो गई हो तो आप उसे
सहज में लेकर भूल जाएं।
मैं आपके आतंक को फैलाने में
आपकी भरपूर सहायता करूँगा।
आखिर मैं भी आपकी
तरह विषधर में परिवर्तित होता मनुष्य हूँ।

 

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