Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राज गहरे

 

सुशील शर्मा

 जिंदगी धूप

तुम्हारी परछाईं

घना सा साया।

 चीखती रातें

सूरज से सवाल

कौन पूछेगा।

 तुम तनहा

तारों में क्यों बैठे हो

कब लौटोगे।

 पेड़ की छाया

काया और ये माया

रूकती नहीं।

 मन के कोने

गुमशुदा सी याद

आँसू की ओस।

 

रातों में नींद

पलकों पे जागती

खुशियां सोतीं।

 

मैं अकेला हूँ

हिचकियाँ क्यों आतीं।

तुम आओगे।

 

पीर पर्वत

दर्द का समंदर

झांक अंदर।

 

हर चेहरा

ओढ़े कई चेहरे

राज गहरे।

 

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