तेरी रचना मेरी रचना से सफ़ेद कैसे?
घडी,निरमा, सर्फ़ लगा कर
नहा धुला कर रचना खरीददारों
कद्रदानों के बाजार में खड़ी है।
रचना को बिकवाने के लिए
कुछ अपनेवाले रिश्तेदार टाइप के कद्रदान
जम कर वाह वाही करते है।
खरीददार कद्रदान शोर के हिसाब से रचना की बोली लगाते है।
और रचना बिक जाती है
सिसकती हुई।
फिर लाइन लगती है।
सम्मानों के लिए।
राजनेताओं के जूतों पर झुके सिर
पूरा जुगाड़, पैसे ,असर ,पावर सब झोंक दिया जाता है।
और फिर एक तमगा टंक जाता है।
सीने में और रचनाकार तैयार हो जाता है
अपनी रचना को बेचने के लिए।
सुशील कुमार शर्मा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY