सुशील शर्मा
मौत का पंजा
झपट कर उड़ा
जीवन हंसा।
काली थी रात
मौत की बरसात
घुप्प अँधेरा।
चीखते जिस्म
लहूलुहान बच्चे
कटे शरीर।
जीवन वृत
रह गया अधूरा
टूटे सपने।
काल कहर
बुझ गयीं ज्योतियाँ
अँधेरे घर।
नन्ही सी बेटी
कब आएंगे पापा
देखती राह।
टूटे सहारे
छूटे सब अपने
दर्द के घेरे।
टूटती रेलें
मौत की सियासत
लाशों का ढेर।
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