Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रेल हादसा

 

सुशील शर्मा

 

 

मौत का पंजा
झपट कर उड़ा
जीवन हंसा।

 

काली थी रात
मौत की बरसात
घुप्प अँधेरा।

 

चीखते जिस्म
लहूलुहान बच्चे
कटे शरीर।

 

जीवन वृत
रह गया अधूरा
टूटे सपने।

 

काल कहर
बुझ गयीं ज्योतियाँ
अँधेरे घर।

 

नन्ही सी बेटी
कब आएंगे पापा
देखती राह।

 

टूटे सहारे
छूटे सब अपने
दर्द के घेरे।

 

टूटती रेलें
मौत की सियासत
लाशों का ढेर।

 

 

????????सुशील शर्मा????????

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ