सुशील शर्मा
चाहे कितना भी तुम मना करो
मान भी जाओ की तुम मेरी हो।
तपते जीवन की धूपों में
तुम शीतल छांव घनेरी हो।
सब रिश्तों से फुरसत
मिल जाये तो।
आ जाना जल्दी से
ऐसा न हो देरी हो।
रूह के रस्ते पर
हम तुम खड़े हुए।
अब न रुकना तुम
चाहे रात अंधेरी हो।
देह तुम्हारी बटी
हुई है रिश्तों में
कई जन्मों तक रूह
सदा से मेरी हो।
अब इतना भी तुम
मुझको न तरसाओ ।
तुम मेरे प्यार की
जीत सुनहरी हो।
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