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रोटी कमाने के लिया भटकता बचपन

 

सुशील कुमार शर्मा

( वरिष्ठ अध्यापक)

 

 

 

भारत में जनगणनाओं के आधार पर विभिन्न बाल श्रमिकों के आंकड़े निम्नानुसार हैं।

1971 -1. 07 करोड़

1981 -1. 36 करोड़

1991 -1. 12 करोड़

2001-1. 26 करोड़

2011 -1. 01 करोड़

यह आंकड़े सरकारी सर्वे के आंकड़े है अन्य सर्वेक्षणों के आंकड़े और भी भयावह हो सकते हैं। कुल बालमजदूरों का 45 % भाग मुख्य श्रमिक हैं अर्थात ये वर्ष में 183 दिनों से ज्यादा मजदूरी करते हैं जबकि 55 % बालश्रमिक आंशिक श्रमिक हैं जो 183 दिनों से कम दिनों में मजदूरीकरते हैं। 2011 की जनगणना से पता चला है कि बालश्रम के आलवा एक ऐसा समूह भी है जो श्रम को तलाश रहा है। 5 से 9 वर्ष के बच्चों का ऐसा समूह जिसे काम की तलाश है 2001 में ऐसे 8. 85 लाख बच्चे थे जो 2011 में बढ़ कर 15. 72 लाख हो गए हैं।

बालश्रम की अगर व्याख्या की जावे तो पांच से चौदह वर्ष की उम्र बच्चे जब आजीविका कमाने के नियोजित हैं तो वह बालश्रम कहलाता है।अधिकारों का खुला हनन है। कम उम्र में पैसे कमाने के लिए श्रम करने से बच्चों के मन ,शरीर और आत्मा पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं।

1. बच्चे अपने शिक्षा के अधिकार से वंचित हो जाते हैं।

2. बच्चे अपने बचपन ,खेल एवं स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित हो जाते हैं।

3. बच्चे अपने स्वतंत्र मानसिक,शारीरक ,मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक अधिकार से वंचित हो जाते हैं।

4. गरीबी अशिक्षा को बढ़ावा देता है।

5. बालश्रम से बच्चे आगे जाकर अकुशल मजदूर बने रहते हैं एवं अपनी सारी जिंदगी गरीबी में गुजारते हैं।

अतः हम कह सकते हैं की बालश्रम मनुष्यके लिए अभिशाप है। इससे बच्चों की जिंदगी नारकीय बन जाती है एवं उनके सुनहरे भविष्य की सारी संभावनाओं पर पूर्ण विराम लग जाता है। ऐसे बच्चों की सारी जिंदगी सड़क पर गरीबी में गुजर जाती है उन्हें अपने श्रम का कम पैसा ,कार्य करने की ख़राब स्थितियां एवं अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है। उनका सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास रुक जाता है और सारी उम्र कम मजदूरी में बितानी पड़ती है।

बाल श्रम के कारण :-बाल श्रम के कई कारण हैं जिनमे प्रमुख कारण निम्न हैं।

1. बाल श्रमिक बड़े मजदूरों की अपेक्षा कम मजदूरी में मिलते हैं एवं श्रम के मामले में बराबर का कार्य करते हैं।

2. इनको नियंत्रित करना आसान होता है।

3. बालश्रमिक बनने का मुख्य कारन अशिक्षा भी है।

4. घर में माँ बाप का बेरोजगार या बीमार रहना भी बालमजदूरी का प्रमुख कारण है।

5. माता पिता या पालक का शराबी या मादक द्रव्यों का सेवन बच्चों को बाल मजदूरी की ओर ले जाता है।

6. परिवार का बेघर होना या परिवार का घुमन्तु होना बाल मजदूरी को बढ़ावा देता है।

7. घर के सदस्यों या माता पिता के बीच झगड़े बच्चों को बालमजदूरी के लिए प्रेरित करते हैं।

बालश्रमिकों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक ढांचा :-भारत के संविधान में ऐसे कई प्रावधान है जो बच्चों के हित के लिए बनाये गयें हैं। भारत के संविधान में सभी नागरिकों के सामान बच्चों को भी न्याय ,सामाजिक,आर्थिक,एवं राजनैतिक स्वतंत्रता ,विचारों की स्वतंत्रता ,विश्वास एवं पूजा का अधिकार है। राइट टू एजुकेशन अधिनियम के अनुसार 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा की बात कही गई है। बंधुआ मजदूरी ,14 वर्ष से कम उम्र बच्चों को खतरनाक नौकरियों में रोक का प्रावधान है। संविधान में राज्यों को निर्देशित किया गया है कि बच्चों को सामान अवसर ,स्वतंत्रता एवं सम्मान का जीवन जीने के अवसर प्रदान किया जाये। संविधान में निम्न अधिनियमों में बाल श्रम के विरुद्ध प्रावधान हैं।

1. फैक्टरी एक्ट 1948 की धारा 67 के अनुसार बच्चों को फैक्टरियों में तभी नियोजित किया जा सकता जब वे किसी प्रमाणित चिकित्सक का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेंगे की उस फैक्टरी में काम करने से बच्चे के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।

2. बालश्रम निषेध अधिनियम 1986 के कानून के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 13 पेशे एवं 57 प्रक्रियाओं जो कि बच्चों के जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं हैं में नियोजन के लिए निषिद्ध माने गए हैं। बच्चों की कार्य अवधि 4. 30 घंटे तय की गई है एवं रात को उनके काम पर प्रतिबन्ध रहेगा।

3. माइंस अधिनियम 1952 की धारा 40 में स्पष्ट उल्लेख है कि कोई भी बच्चा जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है खदानों में नियोजित नहीं किया जा सकता है।

4. मर्चेंट शिपिंग अधिनियम 1958 की धारा 109 के अनुसार 15 वर्ष से काम उम्र बच्चों को बंदरगाहों पर या समुद्री यात्राओं के किसी भी काम पर नियोजित नहीं किया जा सकता है।

5. मोटर ट्रांसपोर्ट एक्ट 1961 की धारा 21 के अनुसार कोई भी आवश्यक मोटर ट्रांसपोर्ट सम्बन्धी कार्य के लिए बच्चों को नियोजित नहीं किया जा सकता है।

वर्ष 1979 में बालमजदूरी से निजात दिलाने के लिए गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया गया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया एवं अपनी सिफारिशें प्रस्तुत किन। समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबन्ध लगाया जाए एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर एवं कार्य क्षेत्रों में सुविधाओं का विस्तार किया जावे। गुरुपाद स्वामी समिति की सिफारिशों के आधार पर बालमजदूरी (प्रतिबन्ध एवं नियमन)अधिनियम 1986 लागु किया गया। इस अधिनियम के अनुसार विशिष्टिकृत खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार पर रोक लगाई गई है। इस कानून के अंतर्गत बालश्रम तकनीकी सलाहकार समितिके आधार पर जोखिम भरे व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं की सूचि का विस्तारीकरण किया गया है जो निम्नानुसार है।

बालश्रमिकों के नियोजन के लिए निषिद्ध पेशे

1. रेल्वे में सिंडर उठाना एवं भवन निर्माण करना।

2. रेल्वे ट्रेनों में केटरिंग एवं वेंडर का कार्य।

3. रेल्वे ट्रेक्स के बीच कार्य करना।

4. बंदरगाहों में नियोजन।

5. पटाखों का खरीदना या बेचना।

6. कत्लगाहों में नियोजन।

7. ऑटोमोबाइल वर्कशॉप एवं गेराज।

8. भट्टियों में काम करना।

9. विषैले रसायनों ,अतिज्वलनशील पदार्थों एवं विस्फोटकों के धंधों में नियोजन।

10 हैंडलूम एवं पावरलूम उद्योग।

11. माइंस (अंडरग्राउंड एवं अंडरवाटर )कालरीज में नियोजन।

12 . प्लास्टिक एवं फाइबर गिलास उद्योग।

13. घरेलू नौकर के रूप में नियोजन।

14 . ढावा ,होटल,रेस्ट्रारेन्ट ,रिज़ॉर्ट एवं मनोरंजन स्थलों पर नियोजन।

15. पानी में छलांग लगाने वाली जगहों पर नियोजन।

16. सर्कस में नियोजन।

17. हाथियों एवं ख़तरनाक जंगली जानवरों के देख रेख के लिए नियोजन।

18. सभी सरकारी विभागों में नियोजन।

इसके अलावा 64 प्रक्रियायें हैं जिनमे बालश्रम का नियोजन निषिद्ध है। सिलिका उद्योग ,वेयर हाउस ,रासायनिक उद्योग ,शराब उद्योग,खाद्य प्रसंस्करण ,मशीन से मछली पकड़ना ,डायमंड ग्राइंडिंग ,रंगरेज,कोयला खेल सामान बनाना ,तेल रिफायनरी ,कागज उद्योग ,विषैले उत्पादों का उद्योग ,कृषि उपकरण उद्योग ,वर्तन निर्माण,रत्न उद्योग ,चमड़ा उद्योग,ताले बनाना ,सीमेंट से निर्माण के सभी उद्योग ,अगरवत्ती बनाना ,माचिस,पटाखा ,माइका ,साबुन निर्माण ,ऊन उद्योग ,भवन निर्माण,स्लेट पेन्सिल एवं बीड़ी उद्योग प्रमुख हैं।

विभिन्न उद्योगों में काम करने वाले बालश्रमिक किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हैं। निरंतर बुरी परिस्थितियों में काम करने ,कुपोषण ,पत्थर धुल कांच आदि के कणों के फेफड़ों में जम जाने,अधिक तापमान में घंटों काम करने एवं खतरनाक रसायनों के संपर्क में रहने के तीन चार वर्षों में ही विभिन्न बीमारियां इन्हे अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं। तपेदिक,अस्थमा,त्वचारोग ,नेत्र रोग स्नायुरोग एवं विकलांगता के चलते 20 वर्ष के होते होते ये पुनः बेरोजगार हो जाते हैं।
बच्चे किसी भी देश ,समाज एवं परिवार के लिए मत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं जिनकी समुचित सुरक्षा ,पालन पोषण,शिक्षाएवं विकास का दायित्व राष्ट्र एवं समुदाय का होता है। योजनाओं ,कल्याणकारी कार्यक्रमों ,क़ानून एवं प्रशासनिक गतिविधियों के चलते भी विगत 6 दशकों में भारतीय बच्चे संकट एवं कष्ट के दौर से गुजर रहे हैं। उनके अभिभावक उन्हें उपेक्षित करते हैं उनके संरक्षक उनका शोषण करते हैं एवं उन्हें रोजगार देनेवाले उनका लैंगिक शोषण करते हैं। बालश्रम बच्चों के शिक्षा एवं विकास के विकल्पों को ही नहीं छीनता है बल्कि इससे परिवार के विकल्प भी समाप्त होने लगते हैं। इस स्थिति में परिवार बालश्रम पर आश्रित हो जाता है। एक बच्चा देखता है की उसका बाप या पालक शराब पीकर माँ को मरता है और बीमार माँ असहाय होकर उसकी और देखती है तो उसका बचपना श्रम की भेंट चढ़ जाता है। वह घर का ख़र्च एवं बीमार माँ की दवाई हेतु अपना बचपन बेच देता है।बच्चों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए हमारी परतंत्रता से मुक्त होना चाहिए। उस परतंत्रता से जहाँ हम यह तय करते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

 

 

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