सुशील शर्मा
एक बहुत बड़े संत का धार्मिक आयोजन हो रहा था।पूरे शहर में पोस्टर बैनर पटे पड़े थे।बहुत बड़ा यज्ञ था।सारे मंत्री विधायक यज्ञ की देख रेख में लगे थे।हर दिन लाखों मिट्टी के शिवलिंग बना कर शिवार्चन हो रहा था।
आसपास के खेतों से टनों मिट्टी लाई जा रही थी।आसपास के सभी विल्ब के पेड़ शमी के पेड़ों की शाखाएं तोड़ कर लाई जा रही थी।
मेरे आंगन के बिल्ब और शमी का पेड़ भी नही बचा पाया।सभी अपने वाले आ गए कहने लगे भाई साहब पुण्य का काम है मना मत कीजिये।
मैं चुपचाप बिल्ब और शमी के पेड़ को लुटते हुए असहाय सा देख रहा था।
मैदान में रुद्राभिषेक चल रहा था।मैं अनमना सा खड़ा था।तभी चमत्कार हुआ और मैने देखा कि उस ठूंठ से विल्ब के पेड़ पर शिव जी क्रोधित मुद्रा में बैठे हैं।
मैंने डरते हुए पूछा *प्रभु आप यहां आप को तो मैदान में होना चाहिए।*
प्रभु गुस्से में बोले जहां प्रकृति का विनाश करके मेरी पूजा हो वहां पर मैं नही हो सकता।
मैंने कहा प्रभु मैं धन्य हुआ जो आपने मुझे दर्शन दिए।
*"मैं तुम्हे दर्शन देने नही तुम्हे चेतावनी देने आया हूँ।*
*अगर इसी तरह तुम लोग दिखावे में आकर मेरे नाम पर प्रकृति का विनाश करते रहे तो वो दिन दूर नही जब मनुष्य नाम का जीव इस पृथ्वी पर नही बचेगा*।भगवान शिव ने मुझे दुत्कारते हुए कहा।
मैं भय से थरथर कांप रहा था।उन्होंने लगभग लताड़ते हुए कहा"
जाओ और उस पंडाल वाले बाबा से कह दो *"मैं इस दिखावे की प्रकृति विनाश ओर समय बर्बाद वाली पूजा से प्रसन्न नही हो सकता।अगर मुझे पाना हो तो प्रकृति को बचाओ,पौधे लगाओ,पानी बचाओ।क्योंकि मेरी आत्मा प्रकृति में बसती है।"*
इतना कह कर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।पंडाल से बुलावा आ गया कि महाराज जी शिव अभिषेक के लिए बुला रहें है।
पंडित मंत्र उच्चारित कर रहे थे"त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्र च त्रिधायुतम्।त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।"
शिव अभिषेक में शिव जी पर बिल्ब पत्र चढ़ाते हुए हर विल्ब पत्र में मुझे शिव जी का क्रोधित चेहरा नजर आ रहा था।
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