Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रुको सुबह

 

 

रुको सुबह
भूख से लड़कर
गरीब बच्चा
झोपडी में सोया है
रात भर रोया है।

 

एक चिड़िया
खेलती थी गुड़िया
सहमे स्पर्श
निषिद्ध सी गलियां
फूल बनी कलियां।

 

निखरे चित्र
बिखरे से चरित्र
यादों की बस्ती
रिश्ते टिके आसो पे
रिश्ते है लिबासों से।

 

समूचा चाँद
चांदनी सा पिघला
सर्द सी रातें
कलकल बहती
रिश्तों की इबारत

 

बहता जाये
समय का दरिया
उम्र को बांधे
रेत सा फिसलता
मुट्ठी से निकलता।

 

 

 

सुशील कुमार शर्मा

 

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