सुशील शर्मा
मन के कोने दर्द बसा है।
लगता कुछ वो अपना सा है।
तेरी पीड़ा पर्वत होगी।
मेरा दर्द समंदर सा है।
मन से तुम जिसको भी देखो।
उसका चेहरा मेरा सा है।
जब भी झांका मन के अंदर।
देखा चेहरा तेरा सा है।
जब भी तुमने मुझ को देखा।
नज़रों में कुछ रिसता सा है।
जीवन के सारे प्रश्नों का
पाया उत्तर तेरा सा है।
जिनके लिए कभी मन उमगा
उनका दिल अब पत्थर सा है।
जब भी जीवन जीना चाहा।
देखा सब कुछ रीता सा है।
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