सच कहना
गुनाह तो नहीं है
रूठते लोग।
मन में आंधी
घुमड़ते विचार
कब रुके हैं।
सत्य बोलना
बहुत कठिन है
रहो अकेले।
जब भी लिखा
कुछ न लिख पाया
सच के सिवा।
मिट्टी का दीया
अँधेरे में प्रकाश
छोटी सी आस।
खिलाफ मेरे
सारा जहाँ खड़ा है
साथ हो तुम।
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