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साहित्यिक बाजार

 

सुशील शर्मा

 

 

 

साहित्यिक बाजार।
कविता बेज़ार।
गद्य बेअसरदार।
चुटकुले मजेदार।
बढ़ता अहंकार।
अभिव्यक्ति बीमार।
भंजक संस्कार।
सभ्यता लाचार।
बिगड़ते व्यवहार।
बिकता साहित्यकार।
प्रकाशक खरीददार।
किताबों की भरमार।
पाठक पर बलात्कार।
मौलिक लेखन असरदार।
चोरी सरे बाजार।
जज गुनहगार।
अपराधी पेशकार
रोते मानवाधिकार।
हँसते दानवाधिकार।
रस्मी गोष्ठियां सेमीनार।
सम्मान गुनहगार।
समारोह व्यापार।
बिकने तैयार।
मुझे खरीदो यार।
कीमत सिर्फ प्यार।
क्यों क्या है विचार।

 

 

कविता खड़ी बाजार में साहित्यिक सब होय।
मत खीचों आँचल मेरा चीख चीख कर रोय।

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