साहित्यिक सब हो रहे चबली ,चोर चकार।
जो जितना अकबक लिखे उतना उत्तम रचनाकार।
वर्तमान साहित्य में शब्द हुए कमजोर।
भाव प्रवणता मर गई मचा हुआ है शोर।
कविता खड़ी बाजार में लूट रहे कवि लोग।
कुछ श्रृंगारों पर लिखें ,कुछ की कलम वियोग।
अश्लीलों को मिल रहा भारत भूषण सम्मान।
पोयट्री मैनेजमेंट कर रहा सरस्वती अपमान।
सम्मानों की भीड़ में खो गया रचनाकार।
साहित्य सुधि को छोड़ कर अहं चढ़ा आचार।
सुशील कुमार शर्मा
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