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सकारात्मक विचार जीवन के लक्ष्य निर्धारित करते हैं

 

सुशील कुमार शर्मा

( वरिष्ठ अध्यापक)

 

 

शासकीय आदर्श उच्च .माध्य. विद्यालय गाडरवारा

 

 

 

मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिम्ब है। जब लोग किसी विचार को सोचते, बोलते और उसे लगातार अपने जीवन का हिस्सा बनाये रखते हैं तो वो उसे ज़िंदा रखते हैं. फिर क्यों न हम एक सकारात्मक विचार को ज़िंदा रखें जो हमें लक्ष्य को पूरा करने की शक्ति दे। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- ‘‘स्वर्ग और नरक कहीं अन्यत्र नहीं, इनका निवास हमारे विचारों में ही है।’’ भगवान् बुद्ध ने अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कहा था- ‘‘भिक्षुओ! वर्तमान में हम जो कुछ हैं अपने विचारों के ही कारण और भविष्य में जो कुछ भी बनेंगे वह भी अपने विचारों के कारण।’’ स्वामी रामतीर्थ ने कहा है- ‘‘मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वैसा ही उसका जीवन बनता है।’’ शेक्सपीयर ने लिखा है- ‘‘कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। अच्छाई- बुराई का आधार हमारे विचार ही हैं।’’ ईसामसीह ने कहा था- ‘‘मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वैसा ही वह बन जाता है।’’ प्रसिद्ध रोमन दार्शनिक मार्क्स आरीलियस ने कहा है- ‘‘हमारा जीवन जो कुछ भी है, हमारे अपने ही विचारों के फलस्वरूप है।’’
विचार की गति प्रकाश की गति से भी तेज होती है। सेकेंड के करोड़वें हिस्से से भी कम समय में हम संसार के किसी भी बिन्दु पर विचार शक्ति द्वारा होकर लौ आते है। महान् वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने अपने सापेक्षवाद के सिद्धान्त में बताया कि यदि कोई वस्तु प्रकाश की गति से भी तेज चले तो समय पीछे रह जाता है और क्रिया आगे निकल जाती है, अर्थात् क्रिया नकारात्मक समय में पूरी हो जाती है। आइन्स्टीन का यह भी कहना है कि कोई भी वस्तु प्रकाश की गति से तीव्र नहीं चल सकती प्रकाश एक सेकेंड में एक लाख 86 हजार मील की गति से चलाता है। क्योंकि जैसे-जैसे वेग बढ़ेगा, भार कम हो जाएगा। प्रकाश की गति से अधिक तेज चलने का अर्थ है कि उसका भार प्रकाश के भार से भी कम होना चाहिये। प्रकाश स्वयं शक्ति है, उसका कोई भार नहीं, इसलिए जो वस्तु प्रकाश की गति से भी तीव्र चलेगी उसका भी भार शून्य हो जायेगा। इस विश्लेषण से पता चलता है कि विचार एक सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान सत्ता है। वह चेतन शक्ति है, इसलिए उसका मूल्य और महत्व भौतिक शक्तियों की तुलना में करोड़ों गुणा अधिक है।
सकारात्मक सोच के बिना जिंदगी अधूरी हैं। सकारात्मक सोच की शक्ति से घोर अन्धकार को भी आशा की किरणों से रौशनी में बदला जा सकता है। हमारे विचारों पर हमारा स्वंय का नियंत्रण होता है इसलिए यह हमें ही तय करना होता है कि हमें सकारात्मक सोचना है या नकारात्मक। मनुष्य का समस्त जीवन उसके विचारों के साँचे में ही ढलता है। सारा जीवन आन्तरिक विचारों के अनुसार ही प्रकट होता है। कारण के अनुरूप कार्य के नियम के समान ही प्रकृति का यह निश्चित नियम है कि मनुष्य जैसा भीतर होता है, वैसा ही बाहर। मनुष्य के भीतर की उच्च अथवा निम्न स्थिति का बहुत कुछ परिचय उसके बाह्य स्वरूप को देखकर पाया जा सकता है। जिसके शरीर पर अस्त- व्यस्त, फटे- चिथड़े और गन्दगी दिखलाई दे, समझ लीजिये कि यह मलीन विचारों वाला व्यक्ति है, इसके मन में पहले से ही अस्त- व्यस्तता जड़ जमाये बैठी है।
विचार- सूत्र से ही आन्तरिक और बाह्य जीवन का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। विचार जितने परिष्कृत उज्ज्वल और दिव्य होंगे, अन्तर भी उतना ही उज्ज्वल तथा दैवी सम्पदाओं से आलोकित होगा। वही प्रकाश स्कूल कार्यों में प्रकट होगा। जिस कलाकार अथवा साहित्यकार की भावनाएँ जितनी ही प्रखर और उच्चकोटि की होगी, उनकी रचना भी उतनी ही उच्च और उत्तम कोटि की होगी।
मस्तिष्क में कल्पना शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा आशाओं और उद्देश्यों को साकार करने के तरीके सुझाएँ जाते हैं। इसमें इच्छा और उत्साह की प्रेरक क्षमता दी गई हैं, जिसके द्वारा योजनाओं और उद्देश्यों के अनुरूप कर्म किया जा सके। इसमें इच्छा शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा योजना पर लंबे समय तक काम किया जा सके।
मस्तिष्क में आस्था की क्षमता दी गई हैं, जिसके द्वारा पूरा मस्तिष्क असीम बुद्धि की प्रेरक शक्ति की तरफ मुड जाता हैं तथा इस दौरान इच्छाशक्ति और तर्कशक्ति शान्त रहती हैं।
इसमें तर्कशक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा तथ्यों और सिद्दांतों को अवधारणाओं, विचारों और योजनाओं में बदला जा सकता हैं।
मस्तिष्क में यह शक्ति दी गई हैं कि यह दुसरें मस्तिष्कों के साथ मौन सम्प्रेषण (Transmission) कर सके, जिसे टेलीपैथी(Telepathy) कहते हैं।
मस्तिष्क में निष्कर्ष की शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा अतीत का विश्लेषण करके भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जा सकता हैं। यह क्षमता स्पष्ठ करती हैं कि दार्शनिक भविष्य का अनुमान लगाने के लिए अतीत की तरफ क्यों देखते हैं।
मस्तिष्क को अपने विचारों की प्रकर्ति चुननें, संशोधित करने और नियंत्रित करने के साधन दिए गए हैं, इसके द्वारा व्यक्ति को अपने चरित्र के निर्माण का अधिकार दिया गया हैं, जोकि इच्छानुसार ढाला जा सकता हैं। और इसे यह शक्ति भी दी गई हैं कि यह यह तय करें कि मस्तिष्क में किस तरह के विचार प्रबल होंगे।
इसे अपने हर विचार को ग्रहण करने, Record करने और याद करने के एक अदभुदत फाइलइंग सिस्टम (filing system) दिया गया हैं जिसे स्मरण शक्ति कहा जाता हैं। यह अदभुद तंत्र अपने आप सम्बन्ध विचारों को इस तरह से वर्गीकृत कर देता हैं कि किसी विशिष्ट विचार को याद करने से उससे जुड़े विचार अपने आप याद आ जातें हैं।
मस्तिष्क में भावनाओं की शक्ति हैं। जिसके द्वारा यह शरीर को इच्छित कर्म के लिए प्रेरित का सकता हैं।
मस्तिष्क में गोपनीय रूप से और ख़ामोशी से कार्य करने की शक्ति हैं जिससे सभी परिस्थितियों में विचार की गोपनीयता सुनिश्चित होती हैं।
विचारों की रचना प्रचण्ड शक्ति है। जो कुछ मन सोचता है, बुद्धि उसे प्राप्त करने में, उसके जुटाने में लग जाती हैं। धीर- धीरे वैसी ही परिस्थिति सामने आने लगती है, दूसरे लोगों का वैसा ही सहयोग भी मिलने लगता है और धीरे- धीरे वैसा ही वातावरण बन जाता है, जैसा कि मन में विचार प्रवाह उठा करता है। भय, चिन्ता और निराशा में डूबे रहने वाले मनुष्य के सामने ठीक वैसी ही परिस्थितियाँ आ जाती हैं जैसी कि वे सोचते रहते हैं। चिन्ता एक प्रकार का मानसिक रोग है जिससे लाभ कुछ नहीं, हानि की ही सम्भावना रहती है। चिन्तित और विक्षुब्ध मनुष्य अपनी मानसिक क्षमता खो बैठता है। जो वह सोचता है, जो करना चाहता है, वह प्रयत्न गलत हो जाता है। उसके निर्णय अदूरदर्शिता पूर्ण और अव्यावहारिक सिद्ध होते हैं। उलझनों को सुलझाने के लिए सही मार्ग तभी निकलता है जबकि सोचने वाले का मानसिक स्तर सही और शान्त हो। उत्तेजित अथवा शिथिल मस्तिष्क तो ऐसे ही उपाय सोच सकता है जो उल्टे मुसीबत बढ़ाने वाले परिणाम उत्पन्न करें।
अतः सदैव विचारों को आशान्वित रखना चाहिए और उन्हें सदा रचनात्मक दिशा में लगाये रहना चाहिए। आज जो साधन और सुविधाएँ प्राप्त हैं उन्हीं के सहारे कल प्रगति के लिए क्या किया जा सकता है, इतना सोचना पर्याप्त है। बड़े साधन इकट्ठे होने पर बड़े कार्य करने की कल्पनाएँ निरर्थक हैं। जो कार्य आज हम नहीं कर सकते उनके लिए माथापच्ची क्यों की जाय? उद्देश्य ऊँचे रखने चाहिए, लक्ष्य बड़े से बड़ा रखा जा सकता है पर यह न भूला दिया कि आज हम कहाँ हैं? आज की परिस्थिति को समझना और उसी आधार पर आगे बढ़ने की बात सोचना ही व्यावहारिक बुद्धिमत्ता है। भविष्य के सम्बन्ध में आशा करते ही रहना चाहिये। जो आपत्तियों और असफलता की बात ही सोचेगा उसे कभी सुअवसर प्राप्त नहीं हो सकते। प्रगतिशील जीवन बना सकना उन्हीं के लिए सम्भव होता है जो प्रगतिशील ढंग से सोचते हैं और अपनी मानसिक शक्ति को रचनात्मक दिशा में संलग्न किये रहते हैं।
इन्सान का मस्तिष्क अपने विचार, प्रबल इच्छा शक्ति और आस्था तीनों की सम्मिलित शक्ति से वह सबकुछ हासिल कर सकता है जो वह पाना चाहता है | हम अपना लक्ष्य निर्धारित करने के बाद हम जो काम करना चाहते हैं अगर वह सही है और उसमे पूर्ण विश्वास है तो हमें आगे बढ़ कर उस काम को करना चाहिए | अपने सपने को सामने रखकर अपने कदम आगे बढ़ा देना चाहिए | इस बात की परवाह किये बगैर कि लोग क्या कहेंगे | हमारी अस्थाई असफलता पर लोग मजाक उड़ा सकते हैं पर वे लोग शायद यह नही जानते कि हर असफलता में सफलता का बीज छुपा होता है

 

 

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