संस्कारों से ही बने जीवन का आधार।
श्रेष्ठ मूल्य साधन सुगम शुचिता का आचार।
जन्म सुधा से मृत्यु तक करते जो सत्कर्म।
प्रारब्धों से जुड़ते चलें वे सब आत्म विचार।
धर्म कर्म नैतिकता का नही रहा अब जोग।
भोग विलास में डूब कर आमंत्रित हैं रोग।
आंख मूंद कर कर रहे पश्चिम का गुणगान।
मन विचार को शुद्ध करे जप तप का संयोग।
सुशील कुमार शर्मा
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