Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सर्वकालिक प्रासंगिक -रामचरित मानस

 

(तुलसी जयंती पर विशेष )

सुशील शर्मा

 

 


तुलसी का ‘रामचरितमानस’ हिन्दी साहित्य का सर्वोत्तम महाकाव्य है जिसकी
रचना चैत्र शुक्ल नवमी 1603 वि. में हुई थी। जिसको तैयार करने में 2 वर्ष
7 महीने तथा 26 दिन लगें ।मानस मूलतः एक साहित्यिक ग्रन्थ है. अतः उसे
उसी निगाह से पढ़ना और मूल्यांकित करना चाहिए. मानस का आरम्भ ही होता है-
वर्णानामर्थसंघानाम रसानां छंदसामपि .
मंगलानां च कर्तारौ वंदे वाणी विनायकौ ..
भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के छ: प्रमुख मानदण्ड निर्धारित किये गये
हैं -:रस, ध्वनि , अलंकार, रीति, वकोकित और औचित्य। तुलसी ने इन सबका
समन्वय किया है, सैद्धांतिक रूप में भी तथा प्रयोगात्मक रूप में भी।
उनका काव्य इन सभी काव्य-सौन्दर्य तत्वों से समन्वित है।
यह काव्य अपनी प्रबंन्धात्मकता, मार्मिकप्रसंग विधान, चारित्रिक महत्तता
, सांस्कृतिक गरिमा एवं गुरुता,गंभीर भाव प्रवाहसरस घटना
संघटन,आलंकारिता,तथा उन्नत कलात्मकता से परिपूर्ण है।
तुलसी ने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में रहकर उनका साक्षात अनुभव
किया था। वे ब्राह्मण थे; पेट की आग बुझाने के लिए द्वार-द्वार भीख
माँगी थी, और मठाधीश का सुख-भोग भी किया था। लोगाें ने 'दगाबाज कहकर
गालियां भी थीं, और महामुनि मानकर भूपतियों तक ने पाँव भी पूजे थे। वे
यौवन की कामासक्ति के शिकार भी हुए थे, और वैराग्य की पराकाष्ठा पर
पहुुँचकर आत्माराम भी हो गए थे। तुलसीदास की लोकप्रियता का कारण यह है कि
उन्होंने अपनी कविता में अपने देखे हुए जीवन का बहुत गहरा और व्यापक
चित्रण किया है। उन्होंने राम के परम्परा-प्राप्त रूप को अपने युग के
अनुरूप बनाया है। उन्होंने राम की संघर्ष-कथा को अपने समकालीन समाज और
अपने जीवन की संघर्ष-कथा के आलोक में देखा है। उन्होंने वाल्मीकि और
भवभूति के राम को पुन: स्थापित नहीं किया है, बल्कि अपने युग के नायक राम
को चित्रित किया है।
नाना पुराण गिगमागम सम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतो ˜पि।
स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा-
भाषा निबन्ध यति मञ्जुलमा तनोति।।
रामचरितमानस की रचना भले ही तुलसी दास ने स्वान्तः सुखाय के हेतु किया हो
लेकिन तुलसी का वह स्वान्तः सुखाय विश्व साहित्य तथा विश्व जन का ही
स्वान्तः सुखाय के रूप में देखा जाता है। जो उनके अन्तस्करण में निरन्तर
निवास करने वाले प्रभु श्रीराम के अन्तस्करण के साथ एकाकार हो गया है।
तुलसीदास ऐसे संवेदनशील महाकवि हैं जो रामचरितमानस जैसी महान कृति का
उद्घाटन करने में सफल सिद्ध होते हैं। रामचरित मानस ऐसी लोकग्राह्य कृति
है जिसमें समाज के लगभग हर एक वर्ग के रेखांकन की सूक्ष्मता को अत्यंत
पैनी एवं गंभीर दृष्टि से देखा जा सकता है।
तुलसी की रामोन्मुखता मानवता ही है। वे जब राम की भक्ति करते हैं, तो
अंततः इस लोक की ही भक्ति करते हैं। उनके राम स्वर्ग में विचरण करनेवाले
देवता नहीं हैं बल्कि समाज में रहने वाले राम हैं। तुलसी के राम आदर्श
चरित्र के नायक हैं। राम का मानवीय व्यवहार सबको लुभाता है, आश्चर्य में
डालता है। राम आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श पति और आदर्श दुश्मन भी
हैं। तुलसी की लोकसाधना ऊपर से देखने में भले ही भक्तिपरक लगती है, पर
उनके भीतर क आदर्श समाज का सपना, एक आदर्श मानव का चरित्र है।वस्तुतः
तुलसी के राम वस्तुत: राम एक हैं। वे ही निर्गुण और सगुण, निराकार और
साकार, अव्यक्त और व्यक्त, अन्तर्यामी और बहिर्यामी, गुणातीत और गुणाश्रय
हैं। निर्गुण राम ही भक्तों के प्रेम-वश सगुण रूप में प्रकट होते
हैं।तुलसी ने द्वैतवादी और अद्वैतवादी मतों का समन्वय किया है। राम और
जगत में तत्त्वत: अभेद है, किन्तु प्रतीयमान व्यावहारिक भेद भी है।
तुलसी ने भेदवाद और अभेदवाद दोनों का समन्वय किया है। स्वरूप की दृषिट से
जीव और र्इश्वर में अभेद है। यह र्इश्वर का अंग है, अत: र्इश्वर की भांति
ही सत्य, चेतन और आनन्दमय है। मानस के अंतस में एक निर्णायक संघर्ष का
विन्यास है जो ऊपर के बजबजाते पानी के शोर में सुनाई नहीं देता.मानस में
अंतर्गुम्फित यह संघर्ष बेजोड़ है और बेजोड़ है तुलसी का रण-कौशल.यह
संघर्ष है- मर्यादा और अमर्यादा के बीच,शुद्ध और अशुद्ध भावना व विचार के
बीच,सहज और प्रपंची भक्ति के बीच,सरल और जटिल जीवन दर्शन के बीच। ‘मानस’
कोरा आदर्श को स्थापित करनेवाला ग्रंथ नहीं है। यहाँ राम के साथ रावण भी
है। सीता के साथ मंथरा भी है। तुलसी संपूर्ण समाज को एक साथ चित्रित करते
हैं।
राम का रामत्व उनकी संघर्षशीलता में है न कि देवत्व में। राम के संघर्ष
से साधारण जनता को एक नई शक्ति मिलती है। कभी न हारनेवाला मन, विपत्तियाँ
हजार हैं, लक्ष्मण को ‘शक्ति’ लगी है, पत्नी दुश्मनों के घेरे में है।
राम रोते हैं, बिलखते हैं पर हिम्मत नहीं हारते हैं।
रामचरित मानस तुलसीदासजी का सुदृढ कीर्तीस्तम्भ है, जिसके कारण वे संसार
में श्रेष्ठ कवि के रुप में जाने जाते है क्योकि, मानस का कथाशिल्प,
काव्यरुप, अलंकार सयोजना,छंदनियोजना,और उसका प्रयोगात्मक सौंदर्य,
लोकसंस्कृति,तथा जीवनमूल्यों का मनोवैज्ञानिक पक्षअपने श्रेष्ठरुप में
है।मुक्ति और भक्ति व्यकितगत वस्तुएँ हैं। तुलसी का मुख्य प्रतिपाध
भक्ति हैं। परन्तु, उन्होंने इस बात का ध्यान रखा है कि मनुष्य सामाजिक
प्राणी है। समाज के प्रति भी व्यक्ति के कुछ कर्तव्य हैं। अतएव अपनी
वृत्तियों केउदात्तीकरण केसाथ ही उसे समाज का भी उन्नयन करना चाहिए।
तुलसी के सभी पात्र इसी प्रकार का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। व्यकित और
समाज, आत्मपक्ष और लोकपक्ष के समन्वय द्वारा तुलसी ने धर्म की सर्वतोमुख
रक्षा का प्रयास किया है। रामचरित मानस तुलसी की उदारता,अन्तःकरण की
विशालता,एव भारतीय चारित्रिक आदर्श की साकार प्रतिमा है। तुलसी ने राम के
रुप में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की ऐसी आदर्शमयी ओर जीवन्त प्रतिमा
प्रतिष्ठित की है जो विश्वभर से अलौकिक,असाधारण, अनुपम एवं अद्भुत है,जो
धर्म एवं नैतिकता की दृष्टि से सर्वापरि है।
सन्दर्भ ग्रन्थ

 

1 . तुलसी नव मूल्याङ्कन -डॉ रामरतन भटनागर
2. विश्वकवि तुलसी दास -डॉ रामप्रसाद मिश्र
3.मानस मीमांसा -डॉ विद्यापति मिश्रा
4. तुलसीदास और उनका साहित्य -डॉ विनय कुमार जैन।

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ