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सत्य कुछ फटा सा

 

सुशील शर्मा

 

 

सत्य कुछ फटा सा

लुटा सा

पिटा सा

हर एक पल

घटा सा।

सत्य कुछ फटा सा।

 

 

रोता हुआ

पिटता हुआ

सड़क पर

घिसटता हुआ

आधा साबुत

आधा मिटा सा।

सत्य कुछ फटा सा।

 

 

पहला सा

सहला सा

गरीब जैसा

दहला सा

अजनबी जैसा

खटा सा।

सत्य कुछ फटा सा।

 

 

बिकता हुआ

फिकता हुआ

बेगारों सा

भटकता हुआ

पैरों के नीचे

अटा सा।

सत्य कुछ फटा सा।

 

 

सिमटता हुआ

निपटता हुआ

मन के कोने

चिमटता हुआ

अंदर से कुछ

घुटा सा।

सत्य कुछ फटा सा।

 



थमता हुआ

रमता हुआ

बर्फ सा

जमता हुआ।

जिंदगी सा

मिटा सा।

सत्य कुछ फटा सा।

 

 

चीखता हुआ

चिल्लाता हुआ

टी वी पर

झल्लाता हुआ

सफ़ेद कुर्ते में

ठुसा सा।

सत्य कुछ फटा सा।

 

 

मिटता हुआ

सटता हुआ

औरत की चीखों

सा घुटता हुआ

सबकी जुबां पर

रटा सा

सत्य कुछ फटा सा।

 

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