सुशील शर्मा
सांकेतिकता और परोक्षप्रियता में लिपटी
तुम्हारी अनगिनित बातें
शब्दों के बीच के शब्दहीन अन्तराल
शब्दों के निहित और सम्भाव्य अर्थ
सबकुछ स्पष्ट फिर भी अनकहे
जाने हुए उत्तर और दिये जा
सकनेवाले उत्तर के बीच के अंतर में
खोजता रहता हूँ अपने अर्थ
मेरी खोज भाषा की खोज नहीं है,
केवल शब्दों की खोज है।
वे शब्द जो तुम्हे परिभाषित कर सकें
मेरे निहित अर्थों में।
तुम्हारा मौन कर देता है
सबकुछ सम्प्रेषित ह्रदय तक
लेकिन उसका अर्थ पूर्णतया एकात्म है।
प्रेम ,अनुभूति और संस्कार आचरण में बोलते हैं
बोले बिना अर्थ समझा नहीं जा सकता
अनुभूति की प्रामाणिकता, सोचने, मानने,
अभिव्यक्त करने, वरण करने के लिए
शब्द चाहिए जिनमें मार्मिक व्यंजना हो।
सम्भावनाओं के परे तक अर्थों का विस्तार हो ।
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