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शौच की सोच

 

सुशील शर्मा

 


आज तहसीली कार्यालय में बहुत गहमा गहमी थी। सभी तैयारी में जुटे थे कलेक्टर साहब ,विधायकजी एवम सभी जन प्रतिनिधि आ रहे थे। आज इस तहसील को बाह्य शौच मुक्त तहसील का तमगा मिलने वाला था।
कार्यक्रम बहुत भव्य हुआ कलेक्टर महोदय ने स्वच्छता के बारे में शासन की प्रतिबद्धता एवम जन सहयोग के ऊपर उद्बोधन दिया। विधायक महोदय ने बहुत गर्व से घोषणा की कि आज यह तहसील बाह्य शौच से मुक्त हुई। कार्यक्रम समापन के उपरांत कलेक्टर महोदय वापिस जिला कार्यालय की और जा रहे थे। शहर के बाहरी छोर पर झुग्गियों के सामने से कुछ औरतें लोटा लटकाये चली आ रहीं थीं। कलेक्टर महोदय समझ गए उन्होंने गाडी रुकवा कर उन औरतों को समझाने की कोशिश की। कलेक्टर महोदय ने कहा "अब आप लोग बाहर शौच के लिए नहीं जा सकते ये एक सामाजिक बुराई है आप लोग अपने घर में शौचालय बनवायें "
उनमे से एक वृद्ध महिला बोली "बेटा हम एक किलोमीटर दूर से पीने के लिए पानी लाते हैं इस में दो लोटा में हमारा काम हो जाता है घर के शौचालय में तो एक आदमी को एक बाल्टी पानी लगता है और बेटा ये हमारा आंतरिक मामला है इसमें तुम न ही बोलो तो ज्यादा अच्छा है। "इतना कह कर वो सब औरतें मुँह बिचकाकर चली गईं।
कलेक्टर महोदय रास्ते में सोच रहे थे शौच का सोच बदलना इतना आसान नहीं है।

 

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