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शिक्षा की व्यथा

 

सुशील शर्मा

 


मास्टर साहब बड़े गंभीर मुद्रा में कुर्सी पर बैठे थे। जिला शिक्षा अधिकारी का संचेतना पत्र आया था कि निरीक्षण के दौरान आपके विद्यालय में कम उपस्तिथि पाई गई आप इस बारे में तीन दिवस के अंदर अपने स्पष्टीकरण भेंजें। मास्टर साहब परेशानी में झल्लाये "मैं क्या उन्हें घर से घसीट कर स्कूल ले आऊं। "
गांव का स्कूल था बेचारे अकेले मास्टरजी 50 ,60 गरीबों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। अब मास्टर पढ़ाये ,भोजन बनवाये ,डाक बनायें या अपने घर के काम निबटाये।
कल कलेक्टर महोदय का दौरा है जिला शिक्षा अधिकारी ने मास्टर साहब की अच्छी हवा भर दी थी की अगर उपस्तिथि कम रही तो खैर नहीं होगी। बेचारा मास्टर घबरा कर छात्रों के घर गया।
"क्यों रतिराम क्या हो रहा है ?"मास्टर साहब को आता देख रतिराम ने ओंटा पर बैठने के लिए फट्टा बिछा दिया "राम राम मास्टर साहब "
रतिराम तुम्हारे बेटा और बिटिया दोनों एक माह से स्कूल नहीं आ रहे हैं। " मास्टर साहब ने शिकायती लहजे में रतिराम से पूछा।
"उन्हें स्कूल भेजो नहीं तो परीक्षा में फेल हो जायेंगे " मास्टरजी ने डर दिखाया।
"ऐसो है मास्साब जित्तो पढ़ने थो उत्तो पढ़ लयो अब हमरे मोड़ा मौड़ी घर को काम कर हैं के किताबों में बिडे रहें। "
"हमाई बकरिएँ कौन चरे है और घर की रोटी पन्ना तो हमाई मोड़ी बने है तुम्हारी मास्टरनी तो ने बना देहे।"रतिराम के चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था।
"फिर भी रतिराम पढ़ लिख कर बच्चे अच्छे गुण सीख जायेंगे जीवन में तरक्की कर हैं।"मास्टरजी ने अंतिम प्रयास किया।
" मास्साब तुमरो ज्ञान तुम्ही रखो हमारे मौड़ा मौड़ी सिर्फ वज़ीफ़ा और मध्यान्ह भोजन के लाने स्कूल जात है। पढ़ा लिखा कर दो कौड़ी के नै करने उन्हें।" रतिराम ने ऊँचा ज्ञान मास्टरजी को दिया।
"मास्साब हमारे बच्चों को बजीफा अभे तक नै मिलो का बात है कल कलेक्टर साहब से शिकायत करने पड़ है। "रतिराम ने चेतावनी देते हुए मास्टर साहब को चिंता में डाल दिया।
इधर मास्टर साहब रतिराम के बच्चों का वज़ीफ़ा बैंक में जमा कर रहे थे उधर बच्चे स्कूल में हुड़दंग मचा रहे थे।

 

 

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