Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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श्रम दिवस

 

श्वेद तरल
श्रम है अविरल
नव निर्माण।

 दो सूखी रोटी
नमक संग प्याज
सतत श्रम।

 विकास पथ
श्रम अनवरत
मैं हूँ विगत।

 मेरा निर्माण
श्रेष्ठ अट्टालिकाएं
टूटी झोपड़ी।

 श्रम के गीत
जो भी गुनगुनाता
होता सफल

 ऊंचे भवन
गिरते आचरण
श्रम आधार।

 पहाड़ खोदा
समंदर को बांधा
मैं हूँ निर्माता।

 विकास रथ
मुझसे गुजरता
हूँ अग्नि पथ।

 फटे कपड़े
अवरुद्ध जीवन
यही नियति।

 

 

 

सुशील कुमार शर्मा

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