सुशील शर्मा
माँ न होती तो इस धरा का विस्तार न होता।
माँ न होती तो सृष्टि का सरोकार न होता।
माँ न होती तो स्नेह का आँचल न होता।
माँ न होती तो वात्सल्य का बादल न होता।
माँ न होती तो चलना कौन सिखाता।
माँ न होती तो लपक गोदी कौन उठाता।
माँ न होती तो न शिक्षा न संस्कार होते।
माँ न होती तो जगत के व्यवहार न होते।
माँ न होती तो ये धड़कता दिल न होता।
माँ न होती तो हमारा सुनहरा कल न होता।
माँ न होती तो हौसलें हम हार जाते ।
माँ न होती तो ग़मों से कैसे पार पाते।
माँ न होती तो बद वक्त कैसे निकलता।
माँ न होती तो कठिन संघर्ष कैसे टलता।
माँ न होती तो दुआएं कौन देता।
माँ न होती तो बलाएँ कौन लेता।
माँ न होती तो हर पल कहर था।
माँ न होती तो ये जीवन जहर था।
माँ न होती तो सूरज कैसे निकलता।
माँ न होती तो चाँद कैसे ढलता।
माँ न होती तो जीवन का अंकुरण न होता।
माँ न होती तो चेतना का संचरण न होता।
माँ न होती तो क्या सीमा पर वीर होते।
माँ न होती तो क्या सैनिक रणधीर होते है।
माँ न होती तो न ये फूल होते न लताएं।
माँ न होती तो व्यर्थ होती ये वीथिकाएं।
माँ न होती तो न बहिन होती न भाई होते।
माँ न होती तो सभी रिश्ते सड़कों पे रोते।
माँ न होती तो तो न कृष्ण होते न राम होते।
माँ न होती तो न ये धर्म तीरथ धाम होते
माँ न होती तो न कोई पैगम्बर न भगवान होते।
माँ न होती तो बुत से बेजान सभी इन्सान होते।
माँ न होती तो ये मौत सर पे सोती।
माँ न होती तो ये पीर पर्वत सी होती।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY