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सौंदर्य

 

सुशील शर्मा

 

 

 

खूबसूरती क्या है
क्या सुन्दर शरीर
क्या नीरज नयन
या संगमरमरी बाहें
या लरजते ओंठ
या फिर लतिका सा रूप
दार्शनिक नजर में खूबसूरती
सिर्फ एक दृष्टिकोण है।
कला पूर्णता को खूबसूरती कहती है।
एक अंधे की खूबसूरती उसकी
मन की आंखों से देखना है।
एक गूंगे की खूबसूरती
उसके संकेतों में बोलने में है।
एक बहरे की खूबसूरती
उसके आंखों के इशारों में छिपी होती है।
एक गरीब की खूबसूरती उसके
श्रम से कमाई रोटी में होती है।
औरत की खूबसूरती
उसकी सहनशीलता में होती है।
एक मर्द की खूबसूरती
उसके पौरुष में छिपी होती है।
एक बच्चे की खूबसूरती
उसकी स्निग्ध हंसी में होती है।
जीवन की खूबसूरती प्रेम में है
मृत्यु की खूबसूरती जीवन मे निहित है।
खूबसूरती के मानक और पैमाने
कितने भौतिक और वासनामय
सौंदर्य अस्तित्व में होता है
और अस्तित्व में विकृतियां है
इसलिए सौंदर्य की परिभाषा
सिर्फ देह के इर्दगिर्द घूमती है
सत्य संघर्ष और सृजन
से निकला सौंदर्य ही शास्वत होता है।

 

 

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