सुशील शर्मा
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सूखी फसलें
दरकते विश्वास
तुमसे आस
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नोंचते गिद्ध
जिस्म की नुमाइश
खुले पैबंद
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काला काजल
सुंदरता सौ गुनी
ग़ोरी की मांग
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ये विषधर
प्रश्नों पे प्रश्नचिन्ह
उत्तर नहीं
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रेंकते टीवी
ख़बरों की नीलामी
इज्जत बिकी
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मन है बैरी
याद करता तुम्हे
प्यार के लम्हे
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मन मयूर
जैसे नाचा हो मोर
उठे हिलोर
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सीधा सरल
निष्कपट निर्दोष
पिया गरल
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शर्मिंदा हूँ मैं
सभ्य लोगों के बीच
क्यों जिन्दा हूँ मैं
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गर्व से लदा
तुम्हारा अहंकार
बना व्यापार
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तड़फे बच्चे
माँ है अस्पताल में
पेट में भूख
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कांधे पे लाश
कई मील पैदल
बेटी उदास
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