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तमसोमा ज्योतिर्गमय :-प्रकाश पर्व दीपावली

 

सुशील कुमार शर्मा

 

 

असत्य से सत्य की ओर ,अंधकार से प्रकाश की ओर ,ज्ञान से अज्ञान की ओर एवं मृत्यु से जीवन की ओर बढ़ने का प्रयास दीपावली है।कार्तिक मास की अमावस्या को मनाये जाने वाले इस पर्व से भले ही तमाम पौराणिक संदर्भ व किंवदंतियां जुड़ी हों लेकिन इसकी मूल अवधारणा अंधेरे पर उजाले की ही जीत है। देशकाल-परिस्थितियों के अनुरूप फसलों से भंडार भरते हुए एवं वर्षा ऋतु की खट्टी-मीठी यादों के बाद ठंड की दस्तक के साथ मनुष्य के अंदर नया उत्साह भरने के लिए दीपावली का त्यौहार आता है।

 

ईश्वर का चेतन रूप दीपावली है :- ईश्वर का चेतन रूप दीपमाला में प्रज्वलित होकर हम सबके ह्रदय में विराजमान होता है। त्यौहार हमारे इतिहास, अर्थशास्त्र, धर्म, संस्कृति, और परंपरा का प्रतिबिम्ब है। ये सब हमारे जीवन का हिस्सा है, दीपावली की हमारे परंपरा में खास भूमिका है और उसके पीछे गहरा दर्शन भी है स्वस्तिक बनाया जाना, शुभ-लाभ लिखा जाना, दीपक प्रत्येक घर-खेत में जलाया जाना, पुराने सिक्के और कलश ---ये सब पूजा के लिए अहम् है यह सब प्रकृति पूजा एवं उस श्रोत के प्रति आभार ब्यक्त करना है जिससे हमारा चेतन जुड़ा हुआ है।जिस प्रकार एक जलता हुआ दीया अनेक बुझे हुए दीयों को प्रज्ज्वलित कर सकता है ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किसी भी मनुष्य की आत्मा दूसरी आत्माओं को भी आध्यात्मिक प्रकाश से प्रज्ज्वलित कर एक सभ्य एवं समृद्ध समाज का निर्माण कर सकती है। दीपक और मनुष्य के बीच बहुत साम्य है। दोनों मिटटी के बने होते हैं। दोनों चेतना से प्रज्वलित होते है। दीपक जलता है तो आलोक बिखेरता है चारों ओर उजाला फैलाता है। मनुष्य प्रदीप्त होता है तो समाज और राष्ट्र में उजाला फैलाता है। दीपक उजाला करके अँधेरे रुपी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है तथा मनुष्य अपने उज्जवल कार्यों से समाज और राष्ट्र के अंतस में फैले अज्ञान को दूर करता है।

 

दीपावली आध्यात्मिक अंधकार को आंतरिक प्रकाश से नष्ट करने का त्यौहार है। ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम अपने आप को संस्कारित कर सकें स्वयं को एवं समाज को कुरीतियों एवं अपसंस्कारों से मुक्त कर सकें मनुष्य जीवन की सार्थकता अपने संस्कारों को व्यक्तित्व के विकास में लगाकर समाज एवं राष्ट्र की सेवा करना है। मनुष्य जीवन संघर्ष से कठनाइयों पर विजय कर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए है। दीपावली का पर्व इन संस्कारों की दीपमाला है जो संघर्षो की घनघोर अँधेरी रात्रि में हमें अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

 

दीपाली मिलन का त्यौहार है। एक ऐसा सामूहिक पर्व जिसमे एक दूसरे के साथ खुशियां बांटी जाती हैं। दीपावली से जीवन में गति आती है। जीवन सकारात्मकता की ओर मुड़ता है नए उत्साह का संचार होता है। इस पर्व से आपसी उमंग ,प्रेम ,सद्भाव ,आनंद एवं उल्लास का वातावरण व्यक्ति एवं समाज में फैलता है।

 

दीपावली की पुराणोक्त मान्यताएं :-दीपावली मूलतः यक्षों का त्यौहार माना जाता है। इस दिन यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ माँ लक्ष्मी की पूजन करते है ऐसी मान्यता है की राजा कुबेर अपने धन समृद्धि को अक्षुण्य रखने के लिए माता लक्ष्मी की पूजन करते है। एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध इसी दिन किया था। रामचन्द्रजी के वनवास से लौटने के बाद अयोध्या वासियों ने दीप प्रज्वलित करके खुशिया मनाई थीं तब से यह त्यौहार मनाया जाता है। विष्णु भगवन ने इसी दिन राजा बलि से देवताओं एवं लक्ष्मीजी को स्वतंत्र कराया था। दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरी‍ का पूजन किया जाता है। इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है। नरक चतुर्दशी को माँ धूमावती जो की अलक्ष्मी का प्रतीक है उनकी पूजा करके विदाई दी जाती है। दीपावली के दिन धन और ऐश्वर्य की देवी माँ लक्ष्मी का पूजन विधान पूर्वक किया जाता है। दीपाली के अगले दिन गोवर्धनपूजा की जाती है इस दिन भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से बचाया था। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।

 

भारत के विभिन्न राज्यों की दीपावली की परम्पराएँ :-भारत के विभिन्न राज्यों में अलग अलग परम्पराओं से दीपावली मनाई जाती है। केरल में कुछ आदिवासी जातियां भगवन राम के जन्मदिवस के रूप में दीपावली मानती है। गुजरात में नमक को लक्ष्मी का रूप मान कर लोग इस दिन नमक की पूजा करके अपना व्यवसाय प्रारम्भ करते हैं। राजस्थान में दीपावली के दिन रात में बिल्ली का स्वागत किया जाता है। ऐसी मान्यता है की अगर इस दिन बिल्ली घर में आकर खीर खा जाती है तो साल भर घर में लक्ष्मी की आगमन होता है। पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा में दीपावली के दिन काली पूजा की जाती है। बुंदेलखंड एवं महाकौशल प्रदेश में माँ लक्ष्मी की पूजन के साथ गोवर्धन पूजन वनदेवी पूजन मढ़ई के रूप में किया जाता है।

 

दीपावली कुछ अपनाने कुछ त्यागने का पर्व :-दीपावली पर अपने घर के साथ साथ अपने मन की भी सफाई करें। साल भर के जितने अहंकार ,द्वेष, ईर्षा मन में समाये हैं उन्हें घर के कचरे के साथ बाहर फेंक कर अपने मन को स्वच्छ उज्जवल धवल कर लें ,उसे दीप मालाओं की तरह चमकाने दें। अपने पर्यावरण को गंदगी से मुक्त करें ,घर के साथ साथ अपने आसपास के वातावरण को साफ रख कर स्वच्छ भारत मिशन में अपना योगदान देवें। गरीब ,अपंग एवं वृद्धजनों के साथ बैठ कर उनके मन के निराशा के अंधेरों को प्रकाश के दीपक में परिवर्तित करने का प्रयास करें। पटाखों से वातावरण प्रदूषित होता है एवं आर्थिक हानि भी होती है अतः पटाखे न छोड़ें एवं उतनी राशि की मिठाई लेकर गरीब बच्चों में बाँट दें। अलक्ष्मी के आने से घर में दरिद्रता आती है जुआं के पैसे अलक्ष्मी का रूप होते हैं आप हारें या जीतें दोनों स्थितियों में आप अलक्ष्मी के शिकार बनेगें। दीपावली संबंधों को बेहतर करने का त्यौहार है इस बहाने संबंधों को सजीव करने का महत्वपूर्ण अवसर मिलता है। इस त्योहार की सकारात्मक ऊर्जा है जो आम और खास का भेदभाव नहीं करती। सही मायनो में खुशी का संपन्नता व विपन्नता से सीधा रिश्ता है भी नहीं। एक मन:स्थिति है। कोई करोड़पति भी खुश नहीं है तो कोई फकीरी में मस्त है। दीपावली के दौरान देर रात व सुबह बाजारों में फेंके गये सामान और दीपावली के बाद पटाखों का कचरा बीनकर खुशी हासिल करने वाले लोग भी इस त्योहार का आनंद लेते हैं।

 

मढ़ई :-"भौजी पटियां पारियो हो गई मढ़ई की बेर " ये लोक गीत दीपाली के अवसर पर महाकौशल क्षेत्र के हर बच्चे की जुबान पर होता है। महाकौशल एवं बुंदेलखंड में दीपावली का त्यौहार मढ़ई के बिना अधूरा माना जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष दौज से चतुर्दशी तक महाकौशल क्षेत्र के हर गांव में मढ़ई मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें ग्वालदेव एवं वनदेवी की पूजा होती है। ग्वालदेव ढालों पर सवारी करतें हैं।इसमें गांव मुहल्लों में मेले लगते है मढ़ई मेले गोंडवाना की सांस्कृतिक एवं सामाजिक समरसता के प्रकाश स्तम्भ है जो आज भी दीपावली पर ग्रामीण क्षेत्रों में जगमगाते हैं। ये मढ़ई मेले प्रकृति के प्रति प्रेम ,अपनत्व , सामाजिक मेलमिलाप एवं ग्रामीण व्यवसाय के सच्चे संवाहक हैं।

 

इस प्रकाश पर्व को मनाने की सार्थकता तभी है जब हम इस त्योहार के मर्म को पहचानें।हम सभी के प्रयास यही हों कि दीपावली के माध्यम से सामाजिक समरसता पैदा की जा सके, आपसी विद्वेष को दूर किया जाये, बुराइयों को मिटाया जाये, खुशियों को बाँटा जाए। इस परंपरा को बाजारवाद का पर्याय न बनने दें। व्यक्तिवादी सोच के बजाय सामाजिक समरसता की धारा बहाएं। खुशी मनाएं, खुशियां बांटें। त्योहार की मूल अवधारणा के अनुरूप भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर तक धन का प्रवाह होने दें। यानी दीये बनाने वाले कुम्हार, गांव-कस्बे के हलवाई, दीये की बाती बनाने वाले व्यक्ति का भी ध्यान रखें। यानी गरीब के चक्र से मुक्ति की चाह रखने वाले तबके का भी ध्यान रखें। उस सामान का उपयोग करें जो भारतीय परंपरा, संस्कृति व बाजार का अंतिम घटक है। आयातित बिजली के दीये वह रोशनी कदापि नहीं दे सकते जो भारतीय माटी के बने दीपक दे सकते हैं। इनसे किसी के जीवन का अंधियारा भी दूर होता है।

 

आप भी दीवाली पर पटाखे फोड़ें, रौशनी करें किन्तु साथ ही याद रखें कि हमारे किसी कदम से हमारे समाज को नुकसान न हो. यदि हम एक कदम भी इस ओर बढ़ा पाते हैं तो फिर जगमग दीपावली का वास्तविक आनन्द उठा सकते हैं। आप सभी को दीपावली की अनंत शुभकामनाएं।

 

 

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