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ताँका -4

 

सुशील शर्मा

 

 

असफलता
अक्सर नापती है
हमारी छाती
दर्द की नींव पर
सफलता की बांग।

 

तेरा निज़ाम
सना है सन्नाटे से
मरता सच
कराहता विश्वास
नहीं है कोई आस।

 

सच की मंडी
खूंटो पर लटका
बिकता सच
सच के मुखोटों में
झूंठ भरे चेहरे।



मुख़ौटा फेंक
असलियत दिखा
कुछ न छुपा
पीठ पर न मार
सीने पे कर वार।

 

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