Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ताँका -5

 

सुशील शर्मा

 

रंजिशें गर
सीने में रखते हो
प्यार भी रखो
दुश्मनी का दस्तूर
प्यार भी भरपूर।

 

लंबी गुप्तगूं
करने का मन है
क्या करूँ पर
बहुत खींची पर
ये जिंदगी कम है।

 

तुम्हारा नाम
लिखा कागज पर
पूर्ण विराम
न ही शब्द उभरे
न ही लेखनी चली।

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