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तंत्र और समाज से त्रासित विकलांग

 

सुशील शर्मा

 

 


विकलांगता कोई अभिशाप या पूर्व जन्मों की सजा या परिवार के पापों का शाप नहीं वरन शारीरक अंगों में कुछ कमी का कारण है जो की ज्यादातर लोगों में होती है कुछ कमियों का प्रभाव समझ में नहीं आता तथा कुछ कमियाँ हमारे जीवन को प्रभावित कर देती हैं। किसी का एक अंग बेकार होने से वो निःशक्त नहीं हो जाता है।
विकलांगता क्या है ?निःशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 की मुताबिक चिकित्सीय दृष्टि से किसी प्रकार की शारीरिक कमी का प्रतिशत 40 से अधिक होता है तो वह विकलांगता की श्रेणी में आता है।
विकलांगता ऐसा विषय है जिसके बारे में समाज और व्यक्ति कभी गंभीरता से नहीं सोचते। क्या हमने सोच होगा की कोई छात्र या छात्रा अपने पिता के कंधे पर बैठकर। भाई के साथ साईकिल पर बैठ कर या माँ की पीठ पर लटक कर या ज्यादा स्वाभिमानी हुआ तो खुद ट्राई साइकल चला कर ज्ञान लेने स्कूल जाता है किन्तु सीढ़ियों पर ही रुक जाता है क्यों की रैंप नहीं है। कैसे अपनी व्हील चेयर को सीढ़ियों पर चढ़ाये ?उसके मन में एक कसक उठती है क्या उसके लिए ज्ञान के दरवाजे बंद हैं क्या शिक्षण संस्था में उसके लिए कोई सुविधा नहीं मिल सकती ?शौचालय तो दूर उसके लिये एक रेम्प वाला शिक्षण कक्ष भी नहीं है जंहां स्वाभिमान के साथ वो अपनी व्हील चेयर चला कर ले जा सके एवं ज्ञान प्राप्त कर सके।
कोई दफ्तर ,बैंक ,ATM ,पोस्ट ऑफिस ,पुलिस थाना ,कचहरी नहीं हैं जहां पर विकलांगों की सुविधाएँ मौजूद हों। सामान्य विकलांगों की तो छोड़िये यहां के विकलांग कर्मचारियों को भी कोई सुविधा नहीं है। अगर विकलांगों को बराबर का अधिकार है तो नजर कहाँ आता है ?
ट्रेन की ही बात कर लेते है। क्या ट्रेनों में विकलांग अकेले यात्रा कर सकते हैं ?प्लेटफार्म, अंडरब्रिज यहां तक की ट्रेनों में चढ़ने के लिए भी विकलांगों को दूसरे की सहायता चाहिए उनके लिए कई मूलभूत सुविधाएँ नहीं हैं। किसी तरह डिब्बे में चढ़ भी जाएँ तो ट्रेनों में विकलांगों के लिए शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं हैं। घर बैठ कर सभी सामान्य लोग ऑनलाइन टिकिट की बुकिंग कर सकते है लेकिन विकलांगों के लिये प्लेट फॉर्म पर लाइन में लग कर ही टिकिट लेनी पड़ती है।
मतदान केन्द्रों पर भी विकलांग लोगो को कोई अलग से सुविधा नहीं दी जाती है अधिकांश मतदान केन्द्रों पर रैंप न होने के कारण विकलांग मताधिकार से वंचित हो जाते हैं। यह तंत्र एवं समाज के लिए शोचनीय एवं शर्मनाक बात है।
हर साल विकलांगों के लिये भारी सहायता राशि की घोषणा बजट में की जाती है कागज पर योजनायें एवं सुविधाएँ उकेरी जाती है लेकिन क्या अभी तक कई भी तंत्र उन्हें उनके मौलिक अधिकार एवं सुविधाएं दे सका है ताकि वे स्वाभिमान के साथ स्कूल कालेज ,दफ्तर या सार्वजनिक स्थल पर जा सकें ?उत्तर शायद कोई नहीं दे सकता है।
हमारा समाज तमाशे का बड़ा शौकीन है ,जहाँ हट कर कुछ देखा तमाशबीन बन गए। विकलांगता भी हमारे समाज में तमाशा है। थोथी संवेदनाओं का केंद्र है ,विकलांगों से सभी सहानुभूति रखते हैं लेकिन उन्हें दोयम दर्जे का व्यक्तित्व मानते हैं। बेचारे ,पंगु ,निर्बल ,निःशक्त जाने कितने संवेदनासूचक शब्दों से लोग अपने को श्रेष्ठ कर लेते हैं। कितनी सरकारी योजनाएं ,विभाग बन गए लेकिन क्या विकलांगों को हम सबल बना पाएं हैं क्या उनको राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ कर राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान ले पाएं हैं ? शायद नहीं ?इसके जिम्मेवार हम सभी हैं। हम एक भीड़ हैं जो तमाशा देखती है। अभी इंसान नहीं बन पाएं है क्यों की इंसान में संवेदनाएं होती है।
विकलांगों के अधिकारों को आवाज़ देता "संयुक्त राष्ट्र विकलांगता समझौता "विश्व व्यापी मानवाधिकार समझौता है। यह समझौता स्पष्ट रूप से विकलांगों के अधिकारों एवं विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा निर्बाध रूप से विकलांगों के पुनर्वास एवं बेहतर सुविधा की पैरवी करता है।
भारतीय संसद ने विकलांगों के पुनर्वास एवं उन्हें देश की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण, पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 विकलांगता अधिनियम पारित किया। स्वाभाविक तौर पर अशक्त लोगों के अधिकारों को प्रतिपादित करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के "राइट्स ऑफ़ पर्सन्स विथ डिसबिलिटीज़ "(CRPD ) कन्वेंशन में कही गई बातों को 2007 में अंगीकार किया एवं विकलांग व्यक्तियों के लिए बने अधिनियम 1995 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित कन्वेंशनजिस पर 2008 में अमल शुरू हुआ के आधार पर बदलने की बात कही।
विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण, पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के अनुसार निःशक्त व्यक्तियों के निम्न अधिकार हैं।
1 -अविकलांग व्यक्तियों की तरह सामान अवसर का अधिकार।
2 -जीवन के कार्यों में सामान्य व्यक्ति के बराबर पूर्ण भागीदारी का अधिकार।
3 -विकलांग जनों को कानूनी मान्यता का अधिकार।
4 -विकलांग जनों को कानूनी सुरक्षा का अधिकार।
5 -विकलांग जनों की देखभाल ,पुनर्वास एवं जीवन की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्राधिकरणों का यह दायित्व है कि वे प्रावधानों के अन्तर्गत विकलांग जनों के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करें।
6 -केंद्रीय एवं राज्य सरकारों का यह दायित्व है कि वे विकलांगता को रोकने के तमाम संसाधनो को जुटाएं ताकि विकलांगता की रोकथाम हो सके।
7 -प्रत्येक विकलांग बच्चे को 18 वर्ष तक निःशुल्क शिक्षा का अधिकार है। सरकार को विशेष शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों की स्थापना करनी चाहिए। एवं विकलांग बच्चों को प्रशिक्षण के अवसर मुहैया करने चाहिए।
8 -पांचवी तक पढ़ाई कर चुके बच्चे मुक्त स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों में अपनी शिक्षा जारी रख सकेंगे एवं उन्हें विशेष पुस्तकें व निःशुल्क उपकरण प्राप्त करने का अधिकार है।
9 -सरकार का कर्त्तव्य है कि वो विकलांग छात्रों के लिए विशेष शिक्षा सम्बन्धी योजनाये ,पाठ्यक्रम एवं शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करे।
10 -सभी श्रेणियों के विकलांगों को सरकारी नौकरियों के पदों में आरक्षण होना चाहिए।
11 -विकलांग जनों को रोजगार देने के लिए विशेष रोजगार केंद्र होने चाहिए।
12 -आवास पुनर्वास के लिए रियायती दरों में जमींन का आवंटन निःशक्त लोगों के लिए होना चाहिए।
13 -विकलांगों के लिए विशेष परिवहन सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए एवं यात्रा में विशेष रियायती छूट देनी चाहिए।
14 -गंभीर विकलांग व्यक्तियों के संस्थानों की मान्यता निर्धारित होगी।
15 -मुख्य आयुक्त एवं राज्य आयुक्त विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों से सम्बंधित मामलों की जाँच करेंगे।
16 -गैर सरकारी संघटनो के साथ मिल कर स्थानीय प्राधिकरण विकलांग व्यक्तियों के लिए बीमा योजनाएं एवं बेरोजगारी भत्ता की योजना बनायेंगें।
17 -छल पूर्ण तरीके से विकलांग व्यक्तियों से लाभ लेने वालों को 2 वर्ष की सजा या 20000 रूपये का अर्थदंड लगेगा।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के 58 चक्र के अनुसार देश में लगभग 1 करोड़ 85 लाख विकलांग हैं ,जबकि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया की और से जारी रिपोर्ट में देश में विकलांगों की संख्या 2 करोड़ 68 लाख है। 75 %विकलांग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं ,49%विकलांग साक्षर हैं एवं 34 % विकलांग रोजगार प्राप्त हैं।
मध्यप्रदेश में कुल 11लाख 31 हज़ार 405 लोग विकलांग हैं।
1 -412404 विकलांग बेरोजगार हैं।
2 -287052 विकलांग दैनिक रूप से आय अर्जित कर जीवन यापन करते हैं।
3 -281670 विकलांग अपना खुद का धंधा करते हैं।
4 -1000 रूपये से कम प्रतिमाह कमाने वाले विकलांग लोगों की संख्या 505472 है।
6 -सरकारी क्षेत्र में केवल 15955 विकलांग काम करते हैं।
7 -प्रदेश में कुल सर्वेक्षित विकलांग जनसंख्या के 80 %यानि 889755 विकलांग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करतें हैं।
8 -केवल 19667 विकलांग व्यक्तियों को स्वरोजगार हेतु सरकारी सहायता मिली है।
9 -सिर्फ 66962 विकलांगों की ही सामाजिक सुरक्षा पेंशन का लाभ मिल रहा है।
सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के द्वारा कुछ वेवसाइट का सर्वेक्षण इस नजरिये से कराया गया की कितनी वेवसाइटों की पहुँच विकलांगो तक है इनमे से 95 % वेवसाइट विकलांगो की पहुँच से बाहर हैं जिनमे चुनाव आयोग की वेबसाइट भी शामिल है।
ये आंकड़े दर्शाते है की स्थिति कितनी भयावह है। समाज एवं तंत्र विकलांगों के प्रति कितना असंवेदनशील है। शिक्षा एवं रोजगार ही विकलांगता से लड़ने के मुख्य अस्त्र हैं किन्तु इन दोनों की स्थिति इतनी दयनीय है की विकलांग व्यक्ति का आत्मबल दम तोड़ देता है।
फ़िलहाल करीब 40 कंपनियाँ विकलांगों को नौकरियां दे रही हैं गैर सरकारी संस्थानों की यह पहल निश्चित रूप से विकलांगों के जीवन में नए रंग भर सकती है। आज आवश्यकता है विकलांगों को सामान अधिकार देने की व सम्मानपूर्वक पूर्वक व्यवहार करने की एवं उन्हें जीवन की मुख्यधारा से जोड़ने की ताकि वो देश निर्माण में अपना योगदान दे सकें। उन्हें दया से ज्यादा हमारे साथ एवं संवेदनाओं की जरूरत है।

 

 

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