सुशील शर्मा
प्यार की राह में उम्र जलती रही।
दिन पिघलते रहे रात ढलती रही।
हर समय हर जगह मन मे तू ही रहा।
न ही मन कह सका न जुबाँ ने कहा।
जिस्म बिंधते गए रिश्ते सजते गए।
रूह घायल हुई हम सिसकते गए।
मेरा जिस्म मेरी रूह का जनाजा बना।
दिल तड़पता रहा तेरे प्यार से सना।
रिश्ते सजते गए हम सिमटते गए।
जमाने की चाहत में हम मिटते गए।
खुद को आईने में हमने तलाशा बहुत।
खुद को देखा तो पाया एक पत्थर का बुत।
उम्र ढलती रही जिंदगी पिघलती रही।
तेरी चाहत सदा दिल में संवरती रही।
तेरा जिस्म एक ख्वाब सा सुलगता रहा।
तेरा प्यार फूल बनकर महकता रहा।
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