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तुलसी तहाँ न जाइये लाख मिले सम्मान

 

(मगसम जबलपुर सम्मान समारोह पर एक रपट )

 

 

 

सुशील कुमार शर्मा

 

 

मगसम पटल से राष्ट्रीय संयोजक महोदय का आदेश हुआ कि जबलपुर सम्मान समारोह पर एक रिपोर्ट तैयार कर पटल पर रखूं बहुत पेशोपेश में था क्या लिंखू। अच्छा अच्छा लिंखू या बुरा बुरा फिर सोचा जो सत्य है वो लिखा जाए।

करीब 4 या 5 अगस्त को मगसम पटल से सूचना मिली कि मेरी रचनाओं को 'रचना प्रतिभा सम्मान" मिला है आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मैंने शिक्षा एवम सामाजिक सरोकारों से जुड़ा साहित्य ही अपनी लेखनी से उतारा है। गाडरवारा के संयोजक विजय बेशर्म का सन्देश भी मुझे प्राप्त हुआ "गुरुदेव 15 अगस्त पर आपका सम्मान है " विजय मेरे प्रिय शिष्य है। नगर के वरिष्ठ साहित्यकार नरेन्द्र श्रीवास्तव जी ने भी फोन कर जबलपुर चलने की बात कही आखिर प्रोग्राम इंटरसिटी से जाने का बन ही गया। मेरी इच्छा समारोह में जाने की नहीं थी क्योंकि मैं जबलपुर के कल्चर में कभी शूट नहीं हुआ करीब 4 साल बाद में जबलपुर जा रहा था। यात्रा कीपूरी जबाब दारी विजय की थी क्योंकि वही सबसे बुजुर्ग थे (सुधीर जी के अनुसार )।हमलोग करीब १० बजे जबलपुर पहुँच गए समारोह का समय हमलोगों को करीब 2 बजे का बताया गया था उस हिसाब से हमें 1 से डेढ़ बजे एक समारोह स्थल पर पहुंचना था। हमारे पास काफी समय था बाजार घूमते हुए हमलोग करीब एक बजे समारोह स्थल जानकी रमण महाविद्यालय पहुंचे। वहां कोई नहीं था हालाँकि मंच सजा हुआ था करीब 50 कुर्सियां लगी हुईं थीं।बाहर दो महानुभाव बैठे थे उन्होंने हमें देख कर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई और उठ कर अंदर चल दिए बाद में पता चला कि वो उस महाविद्यालय के प्राचार्य महोदय थे। हमलोग चुपचाप पिछली बेंच पर जा कर बैठ गए। विजय बहुत असहज लग रहे थे क्योंकि उनको डर था की कहीं गुरुदेव नाराज न हो जाएँ लेकिन मुझे उनकी मजबूरिया एवम सीमायें मालूम थीं। करीब डेढ़ बजे से अतिथियों एवम स्थानीय साहित्यकारों का आगमन शुरू हुआ सबसे पहले गीता गीत जे एवम प्रेमिल जी पधारे हम लोंगों ने उनका स्वागत किया उसके बाद सौमित्र जी। शशिजी और भी सम्मानीय अतिथियों का आगमन हो रहा था जिन से में अपरिचित सा था विजय सबसे मेरा परिचय करवा रहे थे।

करीब 2 बजे एक ऑटो प्रांगण में रुका उसमे से सुधीर जी उतरे साथ में श्री दिनेशजी थे बड़ा आश्चर्य हुआ सुधीरजी के लिए स्टेशन से एक गाड़ी की ही व्यवस्था नहीं हो सकी खेर मन को उस बात से हटा कर सुधीर जी के स्वागत के लिए सभी पहुंचे सुधीर जी का एक हाथ गले से लटका था शायद चोट लगी होगी टी शर्ट में स्मार्ट लग रहे थे। मैने इस पर कोई कमेंट किया था जो मुझे याद नहीं है लेकिन सुधीर जी ने उस बात का मुस्कुराकर स्वागत किया और मुझे धन्यवाद दिया था। मंच पर कुछ औपचारिक साज सज्जा करनी थी लेकिन वहां पर कार्यकर्ताओं का आभाव था सुधीर जी विजय की और मुड़े कहा विजय यहाँ तुम्ही सबसे बुजुर्ग लग रहे हो तुम ये जिम्मेवारी सम्हालो विजय सहर्ष तैयार थे। मैंने सोचा मर प्यारा शिष्य अकेला परेशां होगा चलो इसकी सहायता की जाये करीब आधा घंटा की मेहनत के बाद पेनों के ढक्कनों हमने पोस्टर ताने क्योंकि इतने बड़े माह विद्यालय में पिनो का भीम अकाल था।

करीब 4 बजे के आसपास कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ मंच पर अतिथियों का आगमन हुआ संयोजक के रूप में विजय बेशर्म को भी मंच पर जगह मिली हालाँकि विजय को अटपटा लग रहा था की उनके गुरु एवम वरिष्ठ पीछे बेंच पर बैठे हैं और वो मंच पर कैसे बैठे लेकिन मैंने और नरेंद्र भाई ने उन्हें आश्वस्त किया। मंच का सञ्चालन राजेश पाठक जी कर रहे थे। मंच पर कार्यक्रमो के क्रम को लेकर सुधीर जी एवम राजेश जी में कुछ तनातनी देखि गई हालाँकि अब एक सुधीर जी मंच पर नियंत्रण स्थापित कर चुके थे। कुल 50 से 60 साहित्यकार वहां मौजूद थे।

सरस्वती पूजन उपरांत सरस्वती वंदना एवम दो प्यारी बच्चियों के स्वागत नृत्य ने सभी का मन मोह लिया लगा कार्यक्रम अच्छा चलेगा मंच पर जा तक अतिथियों का स्वागत हुआ सुधीर जी ने विजय की सहायता से प्रमाण पत्रों को क्रम से जमाया एवम उन पर अपने हस्ताक्षर किये। सुधीरजी ने जबलपुर की संयोजक गीता गीत जी से रचना वाचन के लिए साहित्यकारों की सूची मांगी बड़ी मुश्किल से १० रचना वाचकों की सूची प्राप्त हो सकी।

राजेश जी सबसे पहले मंचासीन अतिथियों का उद्बोधन करवाना चाहते हे जबकि सुधीर जी रचनाओं का पाठ बस यंही से दोनों के बीच तना तनी शुरू हो गयी हालाँकि सब कुछ मर्यादित था। सुधीर जी के उद्बोधन की सब को प्रतीक्षा थी मुझे भी उन्होंने मगसम के बारे में पूरी सिलसिलेवार जानकारी अपने उद्बोधन में दी मुझे ज्यादा रुचिकर नहीं लगा क्योंकि ये सब बातें में उनके गाडरवारा के उद्बोधन में सुन चूका था। सुधीर जी के उद्बोधन के पश्चात् रचना वाचन का कार्यक्रम हुआ बहार के रचनाकारों की करीब 15 रचनाएँ स्थानीय साहित्यकारों ने वांची। कुछ का प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा था जिनमें श्री काली दास ताम्रकार प्रमुख थे। कुछ ने अच्छा किया कुछ स्तर से नीचे थे एवम रचनाओं के साथ न्याय नहीं कर पाए।

अगला कार्यक्रम रचनाकारों के सम्मान का था। यहाँ पर में एक बात कहना चाहूंगा की जिन रचनाकारों का सम्मान हो रहा था वहां उनका अपमान ज्यादा हुआ। उनके लिए न तो कोई आगमन के लिए स्वागत में था न ही उनको वो तवज्जो दी जा रही थी जो सम्मानित होने वाले व्यक्ति को दी जाती है। शायद इसी कारन लाल बहादुर शास्त्री सम्मान से सम्मानित छिंदवाड़ा से पधारे श्री देवेंद्र मिश्र बीच में ही उठ कर चले गए थे ये मेरा अनुमान है।अहंकार को अगर स्वाभिमान की सीमा से नीचे धकेल दें तो वह मेरी नजर में कायरता है। अब तक कार्यक्रम उबाऊ हो चला था उधीरजी एक के बाद एक सम्मानित रचनाकारों के नाम पुकार रहे थे एवम मंचासीन अतिथि उन्हें सम्मान पर गहा रहे थे। आखिर तक जब मेरा नाम नहीं पुकारा गया तो विजय जो की सम्मान समारोह में सुधीरजी की सहायता कर रहे थे उन से रहा नहीं गया और उन्होंने सुधीर जी को मेरा नाम याद दिलाया आनन फानन में मेरा प्रशस्ति पत्र ढूढा गया फिर मुझे एक कोई अशोक अंजुम का प्रसस्ति पत्र दिया गया सुधीर जी ने उनका नाम काट कर मेरा नाम लिखा हालाँकि सुधीर जी ने मंच से मेरी काफी तारीफ की जो स्वभावतः मुझे अच्छी लगी। यंहा पर प्रशस्ति पत्र की रचना के बारे में कहना चाहूंगा सम्मान पत्र के जिस हिस्से में जानकारी भरनी थी वह बिलकुल काला है उस पर कोई भी स्याही के अक्षर दृषिगोचर नहीं हो रहे थे। बेहतर होगा अगर ये प्रशस्ति पत्र कुछ एलके रंगों में प्रिंट हो। एवम इसकी जिम्मेवारी संयोजक या स्वयम सम्मानित रचनाकार को सौंप दी जाये तो ज्यादा उत्तम रहेगा।

कार्यक्रम के अंत में मुश्किल से 20 लोग बचे थे जब गीता गीत जी एवम धूमिल जी का सम्मान हो रहा था साथ में नरेंद्र भाई को भी सम्मान की पगड़ी पहनाई गई चुकी गाडरवारा में वो पहले इस सम्मान से सम्मानित हो चुके थे। सबसे आखिर में धूमिल जी की किताब का कब विमोचन हो गया पता ही नहीं चला। कार्यक्रम का समापन श्री सुधीरजी के सम्मान पत्र भेंट करने से हुआ। इसी बीच राजेश पहक जी भुनभुनाते हुए श्री सुधीरजी पर अशोभनीय तो नहीं कहूंगा लेकिन एक तल्ख़ टिप्पणी करते हुए वहाँ से निकल गए। टिप्पणी यंहा पर नहीं लिखना चाहूंगा क्योंकि हमसब को दुःख होगा।

अंत में विजय ने आठ बजे की ट्रैन के टिकिट ली एवम हम लोग करीब ग्यारह बजे घर पहुंचे। अपने बिस्तर पर सोने से पहले मैं सोच रहा था कि सम्मानों में इस क्या है जो लोग मरते दौड़ते कष्ट सहते जाते है एवं अंत में एक फ्रेम किया हुआ कागज का टुकड़ा अपने स्वाभिमान को कुचल कर ले आतें हैं। साहित्य क्या सम्मानों का मोहताज है ?अगर मुझे सम्मान नहीं मिलेगा तो क्या मैं अच्छा नहीं लिख पाऊंगा ?सोचते सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।

हाँ एक बात लिखना तो भूल ही गया की 15 अगस्त पर बहुत अच्छा भाषण तैयार करके गया था लेकिन बोलना तो दूर सम्मान के लिए मंच पर पहुँचने के लाले पड़ गए।

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